
सुबह दे दो
सुबह दे दो
सुबह दे दो
अंधकार ले लो।
सुनहरी किरणों के
नई आभा में
हर कण भिगो लो।
यह आज तुम्हारा है।
जो उगा है सूर्य
वह भी तुम्हारा है।
जिस प्रकाश पुंज में
लिपटा जग सारा है,
हाथ बढ़ाकर छू लो उसे
वह सारा जग तुम्हारा है।
बीती रातों का भय
अब ना लाना तुम
बीती बातों को
भूल जाना तुम
रातें गई, बाते गई,
नई बेला का,
खेल नया, अध्याय नया,
यह खेल अब तुम्हारा है।
रचयिता
दिनेश कुमार सिंह
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