रोटी

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dineshkumar singh

1 Aug 20241 min read

Published in poetry

रोटी

उसने रोटी को

बढ़े ध्यान से देखा।

फिर उंगलियों से

आंसूओ को पोछा।

 

कल दूसरों को रोटी देने वाला,

आज, रोटी मांग रहा था,

क्षण में बदले हालात पर

आंसू बहा रहा था।

 

कल तक सब ठीक था,

फिर अचानक, कुछ

काले बादल छाए,

भूकंप के झटकों ने,

जीवन में सेंध लगाए।

 

जर्जर मकान की

तरह, सब गिर गया।

ऐशो आराम का

वाशिंदा,

मिट्टी से घिर गया।

 

चंद मिनटों का खेल है यह,

चंद मिनटों में, शहर श्मशान

नजर आता है,

मालिक, भिखारी बन जाता है।

 

रोटी कीमती है,

वक्त भी कीमती है।

दोनों का महत्व जानों,

दोनों की कीमत पहचानों।

 

और, “दो इसको”

औरो को भी ।।2।।

 

दो प्यार से,

दो सम्मान से,

क्योंकि क्या पता,

आज उसे पाने वाला,

कल देने वाला था,

भूकंप ना होता,

तो कहां वह लेने वाला था।

 

वह रोता जाता, पर

सूखी रोटी खाता जाता,

यह वक़्त भी बदल जाएगा,

पर यह सबब याद रह जाएगा। ।।2।।

 

 

रचयिता

दिनेश कुमार सिंह

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रोटी

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रोटी

उसने रोटी को

बढ़े ध्यान से देखा।

फिर उंगलियों से

आंसूओ को पोछा।

 

कल दूसरों को रोटी देने वाला,

आज, रोटी मांग रहा था,

क्षण में बदले हालात पर

आंसू बहा रहा था।

 

कल तक सब ठीक था,

फिर अचानक, कुछ

काले बादल छाए,

भूकंप के झटकों ने,

जीवन में सेंध लगाए।

 

जर्जर मकान की

तरह, सब गिर गया।

ऐशो आराम का

वाशिंदा,

मिट्टी से घिर गया।

 

चंद मिनटों का खेल है यह,

चंद मिनटों में, शहर श्मशान

नजर आता है,

मालिक, भिखारी बन जाता है।

 

रोटी कीमती है,

वक्त भी कीमती है।

दोनों का महत्व जानों,

दोनों की कीमत पहचानों।

 

और, “दो इसको”

औरो को भी ।।2।।

 

दो प्यार से,

दो सम्मान से,

क्योंकि क्या पता,

आज उसे पाने वाला,

कल देने वाला था,

भूकंप ना होता,

तो कहां वह लेने वाला था।

 

वह रोता जाता, पर

सूखी रोटी खाता जाता,

यह वक़्त भी बदल जाएगा,

पर यह सबब याद रह जाएगा। ।।2।।

 

 

रचयिता

दिनेश कुमार सिंह

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