दीपक का उजाला !

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

दीपक का उजाला !

उजाले वो देने को जलता रहा है
दीपक है नाम उसका
करम है उसका जलना
वो जल कर बुझा है
धुआँ  बन चला है
मगर वो जला है ।

जितना भी जिया वो ,
दूसरों के वास्ते
खुद के लिए वो कब जिया है
वो जलता रहा है ।

कहीं रोशनी  का निशां वो बना है
कहीं मंदिर की आरती में
आस्था का दिया है
वो जलता रहा है ।

कभी माँ नजर जब उतारे
एक दिया वो जला ले
कभी गरीब की झोपड़ी में
रात भर वो जला है
अक्सर हवाओं से रहती है अनबन
हवाओं से वो लड़ता रहा है
उजाले वो देने को जलता रहा है ।
वो जलता रहा है ।।
                         

मीनू यतिन

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दीपक का उजाला !

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

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दीपक का उजाला !

उजाले वो देने को जलता रहा है
दीपक है नाम उसका
करम है उसका जलना
वो जल कर बुझा है
धुआँ  बन चला है
मगर वो जला है ।

जितना भी जिया वो ,
दूसरों के वास्ते
खुद के लिए वो कब जिया है
वो जलता रहा है ।

कहीं रोशनी  का निशां वो बना है
कहीं मंदिर की आरती में
आस्था का दिया है
वो जलता रहा है ।

कभी माँ नजर जब उतारे
एक दिया वो जला ले
कभी गरीब की झोपड़ी में
रात भर वो जला है
अक्सर हवाओं से रहती है अनबन
हवाओं से वो लड़ता रहा है
उजाले वो देने को जलता रहा है ।
वो जलता रहा है ।।
                         

मीनू यतिन

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