
हिंदी मेरी जिंदगी
हिंदी मेरी जिंदगी
पहला अक्षर जब लिखा,
मां की अंगुली,
और मां की भाषा पाया।
हिंदी कहते हैं उसको,
यह तो बहुत बाद में
समझ आया।
सुंदर थी, सरल थी,
असीमित शब्द कोष थे,
भावों में अविरल थी।
लिखता जाता,
पढता जाता,
कुछ नया गढ़ता जाता।
सब तो सीधा था,
मात्रा* में कभी कभी
चंचल थी।
किताबों में बहती जाती,
कभी कहानी, कभी प्रसंग,
कभी कविता कहलाती।
कभी मै पढ़कर सुनाता,
तो कभी मां, कहानियों में
उसे सुनाती।
मेरे विचारों को ताकत,
मेरी भावनाओं को शब्द दे गई,
मेरे जीवन की मुख्य बिंदु बन गई,
हिंदी मेरी जिंदगी बन गई।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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