
रिश्तो की झांकियां
रिश्तो की झांकियां
उनके दीदार को तरसे है मेरी अखियां,
याद आती है गुजारे मीठी बतिया।।
ना जाने कितने दिन, आई नहीं है निंदिया,
करवटें बदलते बीत जाती है मेरी रतियां,
अब तो नाराज हो गई है मेरी सारी सखियां ।
वीरहा की अग्नि में बुझ जाती है मोमबत्तियां,
यादों को संभाले पढ़ लेती है चिट्टियां,
बेबस लाचार कुछ ऐसी हो जाती है मजबूरियां,
हर रिश्ते को देखना पड़ता है लाखों कठिनाइयां ।
नसीब वाले हैं वे, जिन्हें मिल जाती हैं सब की रजामंदीया,
बेहिसाब होती है कुछ रिश्तो की तबाहीया,
बनते – बनते बिगड़ गई है, बहुत सारी कहानियां,
कुछ ऐसा हो कि, मिट जाए सारी गलतफहमियां,
स्वीकार ले अपनी-अपनी नादानियां।
लुप्त हो जाए रिश्तो की सारी उदासियां,
फिर दूर हो जाएं उनकी सारी तनहाइयां,
फिर उन्ही रिश्तो में बढ़ जाए गहराइयां।
तब प्रेम की परिभाषा बदल जाएगी,
ना तरसेगी दीदार को किसी की अखियां,
बस याद रहेंगी मीठी – मीठी बतिया,
बस याद रहेंगी मीठी मीठी बतिया।।
रचयिता ,
श्वेता गुप्ता
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