शिकायत जिदंगी से

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

शिकायत जिदंगी से

लगता है वो कुछ खफा जिदंगी से
रहने लगा है  अब गमज़दा जिदंगी से
जो भी चाहा वो उसको मिला क्यों नहीं
जो था नागवार वो मिला जिदंगी से

तुम्हारी ही खातिर मैं मर मर के जिया हूँ
जो तुम ही न समझे मेरे मन को तो अब
रहा क्या बाकी कहना किसी से
डबडबाई आँखों ने पूछा ये सवाल

तड़प करके उसने कहा जिदंगी से
तुझे भी है देखा, ये दुनिया भी देखी
नही कोई हसरत किसी को आजमाऊं
नहीं मुझको कोई उम्मीद अब किसी से।।

 

मीनू यतिन

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शिकायत जिदंगी से

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meenu yatin

29 Jul 20241 min read

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शिकायत जिदंगी से

लगता है वो कुछ खफा जिदंगी से
रहने लगा है  अब गमज़दा जिदंगी से
जो भी चाहा वो उसको मिला क्यों नहीं
जो था नागवार वो मिला जिदंगी से

तुम्हारी ही खातिर मैं मर मर के जिया हूँ
जो तुम ही न समझे मेरे मन को तो अब
रहा क्या बाकी कहना किसी से
डबडबाई आँखों ने पूछा ये सवाल

तड़प करके उसने कहा जिदंगी से
तुझे भी है देखा, ये दुनिया भी देखी
नही कोई हसरत किसी को आजमाऊं
नहीं मुझको कोई उम्मीद अब किसी से।।

 

मीनू यतिन

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