आज़ादी अभी अधूरी है

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dineshkumar singh

21 Jul 20241 min read

Published in poetry

आज़ादी अभी अधूरी है।

 

आज़ादी के 75 साल पूरे हो गए,
सबको लगता है कि तय हमने की बड़ी लंबी दूरी है,
पर मुझे लगता है कि,
आज़ादी अभी अधूरी है।

टुकड़ों में मिली आज़ादी को
हम क्यूँ पूरा माने?
आसाम-मिज़ोरम, बेलगाँव, कावेरी
की लड़ाइयों से हम क्यों रहे अंजाने?
इनसे मुँह मोड़कर, हम जयहिंद बोले,
ऐसा तो नही जरूरी है?
आज़ादी अभी अधूरी है।

“सौ करोड़” जनता जब, रोटी की तलाश में
कभी यहाँ, तो कभी वहाँ भटकती है,
कितनी आबादी, अब भी ट्रेनों में लटकती है,
जहाँ रोटी, पानी, बिजली, रस्ते, अब भी
मुख्य मसले हो,
वही, 100 करोड़ की फिरौती लेना,
किसकी, कितनी, मजबूरी है?
आज़ादी अभी अधूरी है।

सरहद के तो दुश्मन छोड़ो,
शहरों में भी दुश्मन आकर
बमबाजी कर जाते हैं।
और कुछ अपने ही,
उन हमलों के सबूत का,
मसला भी उठाते हैं।
ऑक्सिजन टैंकर पर
हाहाकार मच जाता है,
पर उससे जुड़ी मौतों की ख़बर,
सरकारी दस्तावेजों में कही
नज़र नहीं आता है।

ऐसे माहौल में, सिर्फ ताकतवर
शहंशाओ की ख्वाहिशे पूरी है।
हम जैसो की,
आज़ादी तो, अब भी अधूरी है।

 

रचयिता दिनेश कुमार सिंह

 

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आज़ादी अभी अधूरी है

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dineshkumar singh

21 Jul 20241 min read

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आज़ादी अभी अधूरी है।

 

आज़ादी के 75 साल पूरे हो गए,
सबको लगता है कि तय हमने की बड़ी लंबी दूरी है,
पर मुझे लगता है कि,
आज़ादी अभी अधूरी है।

टुकड़ों में मिली आज़ादी को
हम क्यूँ पूरा माने?
आसाम-मिज़ोरम, बेलगाँव, कावेरी
की लड़ाइयों से हम क्यों रहे अंजाने?
इनसे मुँह मोड़कर, हम जयहिंद बोले,
ऐसा तो नही जरूरी है?
आज़ादी अभी अधूरी है।

“सौ करोड़” जनता जब, रोटी की तलाश में
कभी यहाँ, तो कभी वहाँ भटकती है,
कितनी आबादी, अब भी ट्रेनों में लटकती है,
जहाँ रोटी, पानी, बिजली, रस्ते, अब भी
मुख्य मसले हो,
वही, 100 करोड़ की फिरौती लेना,
किसकी, कितनी, मजबूरी है?
आज़ादी अभी अधूरी है।

सरहद के तो दुश्मन छोड़ो,
शहरों में भी दुश्मन आकर
बमबाजी कर जाते हैं।
और कुछ अपने ही,
उन हमलों के सबूत का,
मसला भी उठाते हैं।
ऑक्सिजन टैंकर पर
हाहाकार मच जाता है,
पर उससे जुड़ी मौतों की ख़बर,
सरकारी दस्तावेजों में कही
नज़र नहीं आता है।

ऐसे माहौल में, सिर्फ ताकतवर
शहंशाओ की ख्वाहिशे पूरी है।
हम जैसो की,
आज़ादी तो, अब भी अधूरी है।

 

रचयिता दिनेश कुमार सिंह

 

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