वो बूढ़ा

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

वो बूढ़ा

कांपते हाथों से उसने

शाल को फिर से ठीक किया,

ठंड से सिकुड़ते

वो एक मांस का टुकड़ा

बन बैठा था।

 

साल की आखिरी रात

जश्न की तैयारी थी

खाने और शराब की

दुकानों पर भीड़ भी

भारी थी।

 

यह बूढ़ा शरीर वहीं

एक फुटपाथ पर

नज़र आया,

भागती भीड़ में

शायद कोई ही

उससे टकराया।

 

ठंड बढ़ रही थी

ओस भी गिर रही थी,

उसको पर शायद

रोटी की फ़िकर थी।

अचानक एक साये

ने बंदपाव उसकी

तरफ बढ़ाया।

उस अँधेरे में भी

उसकी झुर्रियों भरे

चेहरे पर

कृतज्ञता का भाव

उभर आया।

 

कांपते हाथ जुड़

गए उसको धन्यवाद

देने को,

शायद उसको

उसमें ईश्वर नज़र आया?

 

रात और चढ़ेगी

12 बजे के बाद

नया वर्ष भी आएगा,

पर इसके जीवन में

इससे कोई फर्क

पड़ जाएगा?

उसके लिए तो

आने वाला सुबह भी

शायद रात्रि का

अंधेरा ही लाएगा।

 

कोई जवाब नहीं था

मेरे पास,

बस एक गवाह

बनकर रह गया

इस घटना का

और लौट आया

अपने कुनबे पर

अपने जश्न की तैयारी में।

 

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

 

 

Photo by İbrahim from Pexels

 

 

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वो बूढ़ा

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

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वो बूढ़ा

कांपते हाथों से उसने

शाल को फिर से ठीक किया,

ठंड से सिकुड़ते

वो एक मांस का टुकड़ा

बन बैठा था।

 

साल की आखिरी रात

जश्न की तैयारी थी

खाने और शराब की

दुकानों पर भीड़ भी

भारी थी।

 

यह बूढ़ा शरीर वहीं

एक फुटपाथ पर

नज़र आया,

भागती भीड़ में

शायद कोई ही

उससे टकराया।

 

ठंड बढ़ रही थी

ओस भी गिर रही थी,

उसको पर शायद

रोटी की फ़िकर थी।

अचानक एक साये

ने बंदपाव उसकी

तरफ बढ़ाया।

उस अँधेरे में भी

उसकी झुर्रियों भरे

चेहरे पर

कृतज्ञता का भाव

उभर आया।

 

कांपते हाथ जुड़

गए उसको धन्यवाद

देने को,

शायद उसको

उसमें ईश्वर नज़र आया?

 

रात और चढ़ेगी

12 बजे के बाद

नया वर्ष भी आएगा,

पर इसके जीवन में

इससे कोई फर्क

पड़ जाएगा?

उसके लिए तो

आने वाला सुबह भी

शायद रात्रि का

अंधेरा ही लाएगा।

 

कोई जवाब नहीं था

मेरे पास,

बस एक गवाह

बनकर रह गया

इस घटना का

और लौट आया

अपने कुनबे पर

अपने जश्न की तैयारी में।

 

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

 

 

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