
भ्रम
भ्रम
राह छूटा, राही छूटे,
छूटा यह जग संसार,
अब भी क्या तुम ना समझे,
यह है मोह का भंडार।
साम, दाम, दंड या भेद,
ना चले, कोई हथियार।
बचपन, ज़वानी और बुढ़ापा,
यह सब है बड़े अनमोल।
पद, पैसा, और प्रतिष्ठा,
ना आयो, फिर किसी के काम।
छूटन, छूटे, छूट गयो,
ना बचे यह तेरे प्राण।
रोकन, रुके, ना रोक पाओगे,
यह तो है विधि का विधान।
जीवन, जीते, अब जी लियो तुम,
ना करो तुम कल का इंतजार।
आज, कल, और है ये परसों,
इस भ्रम में बीत गयो यह संसार।
रचयिता,
स्वेता गुप्ता
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