प्रकृति का संदेश

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namrata gupta

11 Aug 20241 min read

Published in poetry

प्रकृति का संदेश

पर्वत कहता है अपना शीश उठाकर
तुम भी ऊँचें बन जाओ

सागर कहता है लहरा – लहराकर
अपने मन में गहराई लाओ

प्रकृति देती रहती है सबको ये संदेश
रखो न मन में कोई भी द्वेष

चिड़िया अपने मधुर स्वरों से
लोगो को रोज़ जगाती है

सोने वाले खोते रहते है
बस यही बताना चाहती है

धरती माता कहती है की
तुम धेर्य न छोड़ो
चाहे कितनी भी आये मुश्किलें

नभ कहता है तुम समेट लो सबको अपने मे
बनालो सबको अपना, लगालो सबको गले

प्रकृति हर रूप मे हम सबको कई संदेश देती है
“अति” करोगे अगर तुम तो
वो अपना बदला किसी – न – किसी रूप में ले लेती है.

 

नम्रता गुप्ता

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namrata gupta

11 Aug 20241 min read

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प्रकृति का संदेश

पर्वत कहता है अपना शीश उठाकर
तुम भी ऊँचें बन जाओ

सागर कहता है लहरा – लहराकर
अपने मन में गहराई लाओ

प्रकृति देती रहती है सबको ये संदेश
रखो न मन में कोई भी द्वेष

चिड़िया अपने मधुर स्वरों से
लोगो को रोज़ जगाती है

सोने वाले खोते रहते है
बस यही बताना चाहती है

धरती माता कहती है की
तुम धेर्य न छोड़ो
चाहे कितनी भी आये मुश्किलें

नभ कहता है तुम समेट लो सबको अपने मे
बनालो सबको अपना, लगालो सबको गले

प्रकृति हर रूप मे हम सबको कई संदेश देती है
“अति” करोगे अगर तुम तो
वो अपना बदला किसी – न – किसी रूप में ले लेती है.

 

नम्रता गुप्ता

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