
पंख होते तो उड़ जाते रे…..
पंख होते तो उड़ जाते रे…..
आकाश में उड़ते पंछियों को जब भी देखती हूं,
मन में बार-बार यही ख्याल आता है |
क्यों सिर्फ पंछी उड़ पाते हैं दूर गगन में,
और क्यों नहीं इंसान उन जैसी उड़ान भर पाता है।
काश उन जैसे पंख हमें भी होते,
कभी यहां कभी वहां हम
दूर देस का करते सफर।
ना किसी को अपना बनाने की चाह होती,
ना होती रोटी, कपड़ा और मकान की फिकर।
बस उड़ते चलो पंख फैलाए नील गगन में दूर दूर
नई जगह देखने की धुन और मन में उमंग भरपूर।
छू लूं नई ऊंचाइयां मन में बस उड़ने का का जोश हो
कहां है जमीन और कहाँ फलक इसका न कोई होश हो।
नीला आकाश और सफेद बादल सब कुछ देखू ठीक से,
जिन जगहों पर जाने का ख्वाब देखा था उन्हें देख लेती नज़दीक से।
नदी बादल पर्वत झरने जंगल
सब होते मेरे बस में
ना समाज के कायदे कानून
ना इस दुनिया की रस्में।
जहां मन चाहे वहां उड़ पहुंच जाती झट से
जहां दिल करे वहाँ करती अपना बसेरा।
ये इंसान ही है दौलत के पीछे अंधा हुआ जाता है
पंछियों की दुनिया में ना कुछ तेरा ना मेरा।
– आरती
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