भैया, दो कटिंग देना ।

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dineshkumar singh

21 Jul 20242 min read

Published in stories

भैया, दो कटिंग देना ।

“भैया, दो कटिंग देना।” दुकानदार ने आवाज सुनते, बिना ऊपर देखते, पीतल के बर्तन में ख़ौलते चाय को कलछुल से ऊपर उछाला और अच्छी तरह मिला दिया। 

 

अभी चाय पक रही थी। पर उसने थर्मस उठाया और उसमें से गरमा गरम चाय, काँच के दो छोटे छोटे ग्लास में उड़ेल दिया। और उनको मेरी तरफ बढ़ा दिया। चाय की पहली चुस्की लेते ही, अहा की एक बयां न की जा सकने वाली तृप्ति की भावना मन में उभर आई। और याद आ गए ज़ाकिर हुसैन साहब के वो उदगार, “वाह ताज”… 

 

चाय कोई भी हो, पर जब उसमे, दूध, चीनी, चायपत्ती और अदरक की सही मात्रा मिली हो, और वो गर्म हो, तो ऐसा भाव आना तो स्वाभाविक है। चायवाला उसका भाई नही था। वोह कौन था, कहाँ से था, किस जाति का था, किस धर्म का था, पढ़ा लिखा था कि नहीं, यह सब कुछ नहीं पता था। बस वो हमारा चायवाला भैया था। अदब का शब्द था और वो हमारे लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति था। बहुत कम बार होता था, पर अचानक वो नही रहता, और हमारी चाय मिस* होने का खतरा होता, तो हम परेशान हो जाते। चाय भी कैसे रिश्ते बना देती है, ये यहाँ आकर ही पता चलता।

 

हमने अपनी कटिंग खत्म की और पर्स निकाल कर उसे पैसे थमा दिए और जल्दी जल्दी निकल गए। पंद्रह रुपये में दो कटिंग चाय। आज की महंगाई के दर से यह सस्ता है।

 

ओह, क्या आपका सवाल यह है, यह कटिंग चाय क्या है? हा, हा हा!  यह बम्बईया भाषा है, जहाँ आधी कप प्याली चाय को कटिंग कहते है। 

 

 

दिनेश कुमार सिंह

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भैया, दो कटिंग देना ।

“भैया, दो कटिंग देना।” दुकानदार ने आवाज सुनते, बिना ऊपर देखते, पीतल के बर्तन में ख़ौलते चाय को कलछुल से ऊपर उछाला और अच्छी तरह मिला दिया। 

 

अभी चाय पक रही थी। पर उसने थर्मस उठाया और उसमें से गरमा गरम चाय, काँच के दो छोटे छोटे ग्लास में उड़ेल दिया। और उनको मेरी तरफ बढ़ा दिया। चाय की पहली चुस्की लेते ही, अहा की एक बयां न की जा सकने वाली तृप्ति की भावना मन में उभर आई। और याद आ गए ज़ाकिर हुसैन साहब के वो उदगार, “वाह ताज”… 

 

चाय कोई भी हो, पर जब उसमे, दूध, चीनी, चायपत्ती और अदरक की सही मात्रा मिली हो, और वो गर्म हो, तो ऐसा भाव आना तो स्वाभाविक है। चायवाला उसका भाई नही था। वोह कौन था, कहाँ से था, किस जाति का था, किस धर्म का था, पढ़ा लिखा था कि नहीं, यह सब कुछ नहीं पता था। बस वो हमारा चायवाला भैया था। अदब का शब्द था और वो हमारे लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति था। बहुत कम बार होता था, पर अचानक वो नही रहता, और हमारी चाय मिस* होने का खतरा होता, तो हम परेशान हो जाते। चाय भी कैसे रिश्ते बना देती है, ये यहाँ आकर ही पता चलता।

 

हमने अपनी कटिंग खत्म की और पर्स निकाल कर उसे पैसे थमा दिए और जल्दी जल्दी निकल गए। पंद्रह रुपये में दो कटिंग चाय। आज की महंगाई के दर से यह सस्ता है।

 

ओह, क्या आपका सवाल यह है, यह कटिंग चाय क्या है? हा, हा हा!  यह बम्बईया भाषा है, जहाँ आधी कप प्याली चाय को कटिंग कहते है। 

 

 

दिनेश कुमार सिंह

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