
सवाल आमदनी का

सवाल आमदनी का
चिलचिलाती धूप में
तपता है
सूरज सा वो
दिन भर जलता है
ऊक उम्रगुजर गई
फिर भी
वो सर पे
ईट गारों का बोझ उठाता है
रात में अक्सर
उसके झोपडी़ की छत
टपकती है
वो जो औरों के दिन भर
आशियां बनाता है
वो खींचता है
औरों का बोझ
उसे अपने घर पैसे
भेजने हैं
गाँव वाले समझते हैं
वो शहर में खूब कमाता है
वो नौजवान
पढ़ लिख कर
रिक्शा चलाता है
तुम्हें दिख जाएगें
आसपास ही अकसर
मुहँ में बीडी़ दबाए या
बच्चों को बाँधे पीठ पर या
सिर पर बोझ उठाए
उम्र का फर्क नहीं
न फर्क औरत आदमी का
सवाल पेट का है
और रोज की आमदनी का।
मीनू यतिन
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