
दरवाजा
दरवाजा
खुली जिंदगी की,
बंद किताबों में
दबी कई कहानियां हैं।
जैसे, मिट्टी की कई
परतों के निचे छुपी,
खामोश कई सदियां।
यह बंद दरवाजे
खुलते नहीं, उभरते नहीं,
उन्हें इतना गहरे
दफनाया है।
जैसे नीव के इन
तर्जुबे के पत्थरों पर
पूरी जिंदगी की इमारत
उभर आया है।
उन्हें छेड़ने की कोशिश
ना जाने क्या हश्र दे जाए।
इमारत भी गिर जाए,
पूरी मेहनत बर्बाद हो जाए।
पर कुछ ऐसे भी लोग है
जो पीठ पर ख़ंजर चुभाते है।
भरे ज़ख्मों को घाव फिर
दे जाते हैं।
बड़ा लंबा सफर है जिंदगी,
जितना तय किया,
उतना ही बाकी अभी।
जो तोड़ेंगे, उन्हें तोड़ने दो,
अभी और जोड़ना है बाकी।
पन्ने और भरेंगे, किताब और
बढ़ेगी।
भुलाकर कुछ और लोगों को,
रिश्तों को,
कुछ और दरवाजे बंद कर देना
उनकी जगह, नए दरवाजे
कुछ और खुलेंगे ।।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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