बेफिक्री वाली “चाय”

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namrata gupta

21 Jul 20242 min read

Published in stories

बेफिक्री वाली “चाय”

नमिता, शालिनी और नेहा- तीनो सखियाँ काफी दिनों बाद मिलने वाली थी।

नमिता घर को सजाने में लगी हुई थी. कितना अच्छा दिन है आज का! आज मैं अपनी पुरानी सखियों से काफी सालों बाद मिलूँगी। नमिता मन- ही- मन यह बोल ही रही थी की अचानक दरवाजे की घंटी बजी- टिंग -टोंग…..

नमिता दौड़ते हुए दरवाजे की ओर भागी और दरवाजा खोला। अपनी सखियों को देख उसकी आँखों से आसूं छलक पड़े। तीनो सखियाँ गले लग कर खूब रोई, पर ये आंसू खुशी के आंसू थे। बहुत दिनों के बाद अपनी पुरानी सखियो से मिलने की ख़ुशी थी यह। तीनो आराम से सोफे पर बैठ कर बातें करने लगी।

तभी नमिता बोली, “रुक! मै चाय नाश्ता ले कर आती हूँ।” सुनते ही शालिनी और नेहा ने एक साथ बोला- “वहीँ अदरक वाली चाय।” नमिता चाय बहुत अच्छा बनाती थी।

नमिता मुस्कुराते हुए रसोईघर मे चली गयी; उसके पीछे-पीछे शालिनी और नेहा भी रसोईघर में आ गयी। नमिता चाय बनाने के लिए अदरक कूटने लगी। अदरक कूटते देख शालिनी बोली, “यार नमिता, चाय तो हम भी बनाते है, लेकिन तुम्हारी अदरक वाली चाय की बात ही अलग है।” नमिता मुस्करा दी।

चाय बनने के बाद तीनो फिर सोफे पर बैठ कर अदरक वाली चाय की चुस्कियां लेने लगी। साथ में अपने बीते दिनों को चाय की चुस्कियों के साथ ताज़ा कर रही थी।

ये चाय, एक बेफ़िक्री वाली चाय थी जिसमे कुछ पलों के लिए ही सही , पर तीनो सखियाँ बेफिक्र हो गयी थी ।

 

दोस्तों से मिलने के लिए बड़ी दावत की नहीं,
बस एक कप ‘अदरक वाली चाय की’ दावत ही काफी है।

 

नम्रता गुप्ता

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बेफिक्री वाली “चाय”

नमिता, शालिनी और नेहा- तीनो सखियाँ काफी दिनों बाद मिलने वाली थी।

नमिता घर को सजाने में लगी हुई थी. कितना अच्छा दिन है आज का! आज मैं अपनी पुरानी सखियों से काफी सालों बाद मिलूँगी। नमिता मन- ही- मन यह बोल ही रही थी की अचानक दरवाजे की घंटी बजी- टिंग -टोंग…..

नमिता दौड़ते हुए दरवाजे की ओर भागी और दरवाजा खोला। अपनी सखियों को देख उसकी आँखों से आसूं छलक पड़े। तीनो सखियाँ गले लग कर खूब रोई, पर ये आंसू खुशी के आंसू थे। बहुत दिनों के बाद अपनी पुरानी सखियो से मिलने की ख़ुशी थी यह। तीनो आराम से सोफे पर बैठ कर बातें करने लगी।

तभी नमिता बोली, “रुक! मै चाय नाश्ता ले कर आती हूँ।” सुनते ही शालिनी और नेहा ने एक साथ बोला- “वहीँ अदरक वाली चाय।” नमिता चाय बहुत अच्छा बनाती थी।

नमिता मुस्कुराते हुए रसोईघर मे चली गयी; उसके पीछे-पीछे शालिनी और नेहा भी रसोईघर में आ गयी। नमिता चाय बनाने के लिए अदरक कूटने लगी। अदरक कूटते देख शालिनी बोली, “यार नमिता, चाय तो हम भी बनाते है, लेकिन तुम्हारी अदरक वाली चाय की बात ही अलग है।” नमिता मुस्करा दी।

चाय बनने के बाद तीनो फिर सोफे पर बैठ कर अदरक वाली चाय की चुस्कियां लेने लगी। साथ में अपने बीते दिनों को चाय की चुस्कियों के साथ ताज़ा कर रही थी।

ये चाय, एक बेफ़िक्री वाली चाय थी जिसमे कुछ पलों के लिए ही सही , पर तीनो सखियाँ बेफिक्र हो गयी थी ।

 

दोस्तों से मिलने के लिए बड़ी दावत की नहीं,
बस एक कप ‘अदरक वाली चाय की’ दावत ही काफी है।

 

नम्रता गुप्ता

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