समर्पण

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sweta gupta

30 Jul 20241 min read

Published in poetry

समर्पण

क्यों मन को करता भारी,

जब जेब हो खाली।

 

ना कुछ है खोने को ,

और ना ही बचा कुछ रोने को।

 

डूबने चले थे समंदर में ,

लो कर दिया उसने भी कोने में।

 

सोच क्या कुछ मिला है देखने को,

जिंदगी बहुत बची है जीने को।

 

ना कर खुद को उदास ,

क्योंकि तुम हो शिव के दास।

 

बस कर दो समर्पण,

और देख ले अपना दर्पण ।

 

जब अंदर आएगी तब्दीली,

बाहर बदल जाएगी तकदीर ही।

 

 

 

रचयिता, स्वेता गुप्ता

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sweta gupta

30 Jul 20241 min read

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समर्पण

क्यों मन को करता भारी,

जब जेब हो खाली।

 

ना कुछ है खोने को ,

और ना ही बचा कुछ रोने को।

 

डूबने चले थे समंदर में ,

लो कर दिया उसने भी कोने में।

 

सोच क्या कुछ मिला है देखने को,

जिंदगी बहुत बची है जीने को।

 

ना कर खुद को उदास ,

क्योंकि तुम हो शिव के दास।

 

बस कर दो समर्पण,

और देख ले अपना दर्पण ।

 

जब अंदर आएगी तब्दीली,

बाहर बदल जाएगी तकदीर ही।

 

 

 

रचयिता, स्वेता गुप्ता

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