
समर्पण
समर्पण
क्यों मन को करता भारी,
जब जेब हो खाली।
ना कुछ है खोने को ,
और ना ही बचा कुछ रोने को।
डूबने चले थे समंदर में ,
लो कर दिया उसने भी कोने में।
सोच क्या कुछ मिला है देखने को,
जिंदगी बहुत बची है जीने को।
ना कर खुद को उदास ,
क्योंकि तुम हो शिव के दास।
बस कर दो समर्पण,
और देख ले अपना दर्पण ।
जब अंदर आएगी तब्दीली,
बाहर बदल जाएगी तकदीर ही।
रचयिता, स्वेता गुप्ता
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