
बारिश की बूंदे
बारिश की बूंदे
जब खिड़की खोलू तो तब अंदर आती है बूंदे बारिश की
सूरज के खिलाफ की साज़िश कि कहानी बताती है बूंदे बारिश की
एक तरफ बदलो से बिछुडने का दुःख है उनमे
पर दूसरी तरफ संतुष्टि भी है धरती से मिलन की ….
आसमान से धरती तक की इस राह मे
भूमि से मिलन की इस अतृप्त चाह मे…
बदल का घूंघट ओढ़ सूरज से छिपते हुए
अजीब से फुर्ती पाई थी बूंदों ने ज़मीन पे गिरते हुए….
भूमि से मिलन की कहानी बूंदे सुनती है
जीत के गीत धीरे-धीरे गुनगुनाती है…
सारे बंधंनो को तोड़
बचाया भूमि को सूरज के प्रलय से
तृप्त किया भूमि को अपने सफल प्रणय से…
नम्रता गुप्ता
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