
लहर
लहर
बलखा तो रही हो, ऐ लहर,
किनारा मिलने का प्रमोद है
या समुद्र से बिछड़ने का क्षोभ?
शोक सा तो दीखता नहीं,
किनारा ही तुम्हारा अंत है,
क्या यह तुमको पता नहीं?
या यह अंत ही है जिसका
उत्सव मना रही हो।
बलखा तो रही हो, ऐ लहर,
पर जीवन का द्वंद भरा
सत्य बतला रही हो।
अंत तो अनिवार्य है,
क्यों ना मृत्यु का मिलन
एक उत्सव ही हो।
उत्सव इस आवरण से मुक्त होने का,
उत्सव पुनः घर लौटने का,
उत्सव स्वार्थी विश्व से मुक्त होने का,
उत्सव परिजनों को सुख देने का,
उत्सव इन थकी, पथराई आंखों को
आराम देने का।
बलखाओ, बलखाती रहो, ऐ लहर,
अंत के साथ भी, अंत के बाद भी।
आशीष कुमार त्रिपाठी “अलबेला”
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