संजीवनी

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dineshkumar singh

25 Jul 20241 min read

Published in poetry

संजीवनी

संजीवनी ने अपना
असर दिखाया था,
लखन लाल को

पुनः होश आया था।
राम भैया की अँखियों में
सागर से भी ज्यादा
जल भर आया था। 

कसकर बाहुपाश में
उन्होंने, अपने अनुज को नहीं,
जैसे अपने, प्राणों को
गले लगाया था। 

युगों तक ना उतर पाए,
हनुमंत की भक्ति ने,
आज फिर ऐसा ऋण
चढ़ाया था। 

कार्य अभी अधूरा था,
पहले वैद्य सुषेण को,
फिर गिरि को
अपने स्थान
पहुंचाया था। 

एक शक्ति बाण ने
लक्ष्मण सहित सारी
वानर सेना को
मूर्छित अवस्था में
पहुंचाया था।

वही महाबली की शक्ति ने,
केवल दो पहरों की रात में,
नया सूर्य उगाया था। 

काल कितना भी विपरीत
क्यूँ ना हो,
शत्रु कितना भी शकितशाली
क्यूँ ना हो,
भक्ति और कोशिश
परिस्थिति बदल देते है,
बजरंगबली ने यह
कर दिखलाया था।

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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संजीवनी

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dineshkumar singh

25 Jul 20241 min read

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संजीवनी

संजीवनी ने अपना
असर दिखाया था,
लखन लाल को

पुनः होश आया था।
राम भैया की अँखियों में
सागर से भी ज्यादा
जल भर आया था। 

कसकर बाहुपाश में
उन्होंने, अपने अनुज को नहीं,
जैसे अपने, प्राणों को
गले लगाया था। 

युगों तक ना उतर पाए,
हनुमंत की भक्ति ने,
आज फिर ऐसा ऋण
चढ़ाया था। 

कार्य अभी अधूरा था,
पहले वैद्य सुषेण को,
फिर गिरि को
अपने स्थान
पहुंचाया था। 

एक शक्ति बाण ने
लक्ष्मण सहित सारी
वानर सेना को
मूर्छित अवस्था में
पहुंचाया था।

वही महाबली की शक्ति ने,
केवल दो पहरों की रात में,
नया सूर्य उगाया था। 

काल कितना भी विपरीत
क्यूँ ना हो,
शत्रु कितना भी शकितशाली
क्यूँ ना हो,
भक्ति और कोशिश
परिस्थिति बदल देते है,
बजरंगबली ने यह
कर दिखलाया था।

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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