तन्हाई

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sweta gupta

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

तन्हाई

तेरे आने से मची है ये तबाही,

अब बर्दाश्त ना हो ये तन्हाई ।

 

तेरे गालों के गड्ढें पर जो मैं गिरी-ही,

तेरे आने की खुशी मे मैं नाची-हीं, ओ रघुवीरा।

 

जो तूं देखे मुझे मैं फिर खो जाऊं अपने होश-ही,

टूट कर चाहा था जिसे, उसने मेरे साथ यह किया-ही, सून रघुवीरा।

 

सोचा कि तूं बदल गया होगा मगर, तूं वैसा-ही,

तूने अपनी राता सिर्फ की हैं रंगीन-ही, देख रघुवीरा।

 

क्यों किया यह तूने मेरे साथ-ही, 

क्यों नहीं आई शर्म तुझे इस बात-की, हे रघुवीरा।

 

तुझे प्यार करूंगी मैं सदा-ही,

तेरे बारे जब सोचो तो मिले दर्द-ही, ओ मेरे रघुवीरा।

 

तुमने क्यों बुलाया था मुझे उसी शाम-ही,

जो था ना प्यार तो क्यों आया करीब-ही, देख ओ रघुवीरा।

 

तुझसे प्यार करके मैंने खुदको दी है सजा-ही,

तूमने जो पकड़ा मेरा हाथ तो फिर मैं जल्ली-ही, हे मेरे रघुवीरा।

 

तेरे गालों के गड्ढे पर जो गिरी-ही,

अब बर्दाश्त ना हो मुझसे यह तन्हाई।

अब तो आ मेरे रघुवीरा।

 

 

रचयिता स्वेता गुप्ता

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तन्हाई

तेरे आने से मची है ये तबाही,

अब बर्दाश्त ना हो ये तन्हाई ।

 

तेरे गालों के गड्ढें पर जो मैं गिरी-ही,

तेरे आने की खुशी मे मैं नाची-हीं, ओ रघुवीरा।

 

जो तूं देखे मुझे मैं फिर खो जाऊं अपने होश-ही,

टूट कर चाहा था जिसे, उसने मेरे साथ यह किया-ही, सून रघुवीरा।

 

सोचा कि तूं बदल गया होगा मगर, तूं वैसा-ही,

तूने अपनी राता सिर्फ की हैं रंगीन-ही, देख रघुवीरा।

 

क्यों किया यह तूने मेरे साथ-ही, 

क्यों नहीं आई शर्म तुझे इस बात-की, हे रघुवीरा।

 

तुझे प्यार करूंगी मैं सदा-ही,

तेरे बारे जब सोचो तो मिले दर्द-ही, ओ मेरे रघुवीरा।

 

तुमने क्यों बुलाया था मुझे उसी शाम-ही,

जो था ना प्यार तो क्यों आया करीब-ही, देख ओ रघुवीरा।

 

तुझसे प्यार करके मैंने खुदको दी है सजा-ही,

तूमने जो पकड़ा मेरा हाथ तो फिर मैं जल्ली-ही, हे मेरे रघुवीरा।

 

तेरे गालों के गड्ढे पर जो गिरी-ही,

अब बर्दाश्त ना हो मुझसे यह तन्हाई।

अब तो आ मेरे रघुवीरा।

 

 

रचयिता स्वेता गुप्ता

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