
तन्हाई
तन्हाई
तेरे आने से मची है ये तबाही,
अब बर्दाश्त ना हो ये तन्हाई ।
तेरे गालों के गड्ढें पर जो मैं गिरी-ही,
तेरे आने की खुशी मे मैं नाची-हीं, ओ रघुवीरा।
जो तूं देखे मुझे मैं फिर खो जाऊं अपने होश-ही,
टूट कर चाहा था जिसे, उसने मेरे साथ यह किया-ही, सून रघुवीरा।
सोचा कि तूं बदल गया होगा मगर, तूं वैसा-ही,
तूने अपनी राता सिर्फ की हैं रंगीन-ही, देख रघुवीरा।
क्यों किया यह तूने मेरे साथ-ही,
क्यों नहीं आई शर्म तुझे इस बात-की, हे रघुवीरा।
तुझे प्यार करूंगी मैं सदा-ही,
तेरे बारे जब सोचो तो मिले दर्द-ही, ओ मेरे रघुवीरा।
तुमने क्यों बुलाया था मुझे उसी शाम-ही,
जो था ना प्यार तो क्यों आया करीब-ही, देख ओ रघुवीरा।
तुझसे प्यार करके मैंने खुदको दी है सजा-ही,
तूमने जो पकड़ा मेरा हाथ तो फिर मैं जल्ली-ही, हे मेरे रघुवीरा।
तेरे गालों के गड्ढे पर जो गिरी-ही,
अब बर्दाश्त ना हो मुझसे यह तन्हाई।
अब तो आ मेरे रघुवीरा।
रचयिता स्वेता गुप्ता
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