रूका हुआ पानी

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

रूका हुआ पानी

बहता पानी बहते रहता है

कभी संथ गति से बहता

कभी नटखट बालक सा

कूदता, उछलता,

शोर मचाता।

कभी, अल्हड़ युवती सा

मटकता

कभी इस किनारे तो

कभी उस मोड़ पर

भटकता

उसमें जोश होती

ऊर्जा होती

कभी चट्टानों से अड़ जाता

तो कभी उनसे रास्ता बनाता।

 

बहता पानी,

एक अधूरी कहानी है।

जिंदगी की निशानी है।

 

कोरोना से मजबूर

दो कमरों में बंद जिंदगी

तो एक रुका हुआ पानी है।

 

हम बैठ कर, पूरी दुनिया दौड़

तो रहे हैं, पर

थमी थमी सी,

थकी थकी सी

जिंदगी है।

 

सब कुछ बदल गया है,

दौड़ना भागना बढ़ गया है, पर

पानी का बहना रूक गया है

वो नटखट पन, अल्हड़पन

थम सा गया है।

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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रूका हुआ पानी

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

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रूका हुआ पानी

बहता पानी बहते रहता है

कभी संथ गति से बहता

कभी नटखट बालक सा

कूदता, उछलता,

शोर मचाता।

कभी, अल्हड़ युवती सा

मटकता

कभी इस किनारे तो

कभी उस मोड़ पर

भटकता

उसमें जोश होती

ऊर्जा होती

कभी चट्टानों से अड़ जाता

तो कभी उनसे रास्ता बनाता।

 

बहता पानी,

एक अधूरी कहानी है।

जिंदगी की निशानी है।

 

कोरोना से मजबूर

दो कमरों में बंद जिंदगी

तो एक रुका हुआ पानी है।

 

हम बैठ कर, पूरी दुनिया दौड़

तो रहे हैं, पर

थमी थमी सी,

थकी थकी सी

जिंदगी है।

 

सब कुछ बदल गया है,

दौड़ना भागना बढ़ गया है, पर

पानी का बहना रूक गया है

वो नटखट पन, अल्हड़पन

थम सा गया है।

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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