फ़ितरत

Avatar
meenu yatin

1 Aug 20241 min read

Published in poetry

फ़ितरत

पता होता चाँद को,
इतने क़द्रदान हैं, हमारे जमीन पर,
वो खुद पे इतरा रहा होता ।
उतर कर जमीन पर आता गर
तो ठोकरें खा रहा होता।

पहुँच के बाहर है तो पाने का जुनून ,
है पहुँच में तो, अपनाने का जुनून
इंसान की अजीब फ़ितरत है !
जो वैसा पसंद था,
अब उसी को बदलना है क्यूँ?

रंग बदलते देखा, उसने
अपनी ही गढ़ी तसवीर को
वो कलाकार खुदसे शर्मिंदा हुआ,
ये भला क्या नया रंग जिदां हुआ !

जब इल्म बढ़ता है,
तो आदमी झुकता है
जब शान बढ़ती है
तो तनता है,
मिट गया इंसान जो
खुद पे नुमाइंदा हुआ।

 

मीनू यतिन

Comments (0)

Please login to share your comments.



फ़ितरत

Avatar
meenu yatin

1 Aug 20241 min read

Published in poetry

फ़ितरत

पता होता चाँद को,
इतने क़द्रदान हैं, हमारे जमीन पर,
वो खुद पे इतरा रहा होता ।
उतर कर जमीन पर आता गर
तो ठोकरें खा रहा होता।

पहुँच के बाहर है तो पाने का जुनून ,
है पहुँच में तो, अपनाने का जुनून
इंसान की अजीब फ़ितरत है !
जो वैसा पसंद था,
अब उसी को बदलना है क्यूँ?

रंग बदलते देखा, उसने
अपनी ही गढ़ी तसवीर को
वो कलाकार खुदसे शर्मिंदा हुआ,
ये भला क्या नया रंग जिदां हुआ !

जब इल्म बढ़ता है,
तो आदमी झुकता है
जब शान बढ़ती है
तो तनता है,
मिट गया इंसान जो
खुद पे नुमाइंदा हुआ।

 

मीनू यतिन

Comments (0)

Please login to share your comments.