खोज

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sweta gupta

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

खोज

क्यों दूसरों में प्यार खोजा करती हो,
क्यों नहीं अपने अंदर के प्यार को समझती हो।

बाहर जिसे तुम ढूंढती,
वो कृष्ण तो अंदर बैठा है तेरे।

क्यों ढूंढती हो गैरों में अपना प्यार,
झांक, और समझ अपने अंदर का प्यार।

क्यों बनती हो दूसरों की कठपुतली तुम,
देखलो अपने अंदर के प्रेम को तुम।

ना खोज औरों में कृष्ण को, क्योंकि,
राधा भी तुम, और कृष्ण भी तुम।

रचयिता – स्वेता गुप्ता

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क्यों दूसरों में प्यार खोजा करती हो,
क्यों नहीं अपने अंदर के प्यार को समझती हो।

बाहर जिसे तुम ढूंढती,
वो कृष्ण तो अंदर बैठा है तेरे।

क्यों ढूंढती हो गैरों में अपना प्यार,
झांक, और समझ अपने अंदर का प्यार।

क्यों बनती हो दूसरों की कठपुतली तुम,
देखलो अपने अंदर के प्रेम को तुम।

ना खोज औरों में कृष्ण को, क्योंकि,
राधा भी तुम, और कृष्ण भी तुम।

रचयिता – स्वेता गुप्ता

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