पैंसठ प्रतिशत

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धनेश परमार

30 Jul 20244 min read

Published in stories

पैंसठ प्रतिशत

 

बेल बजी तो द्वार खोला। द्वार पर रघु खड़ा था। रघु हमारी कॉलोनी (colony) के लोगों की गाड़ियाँ, बाइक्स वगैरह धोने का काम करता था।

“साहब, जरा काम था।”

“तुम्हारी पगार बाकी है क्या, मेरी तरफ ?”

“नहीं साहब, वो तो कब की मिल गई। पेड़े देने आया था, बेटा दसवीं पास हो गया।”

“अरे वाह ! आओ अंदर आओ।”

मैंने उसे बैठने को कहा। उसने मना किया लेकिन फिर, मेरे आग्रह पर बैठा। मैं भी उसके सामने बैठा तो उसने पेड़े का पैकेट मेरे हाथ पर रखा।

“कितने मार्क्स मिले बेटे को ?”

“पैंसठ प्रतिशत।”

“अरे वाह !” उसे खुश करने को मैं बोला।

आजकल तो ये हाल है कि, 90 प्रतिशत ना सुनो तो आदमी फेल हुआ जैसा मालूम होता है। लेकिन रघु बेहद खुश था।

“साहब, मैं बहुत खुश हूँ। मेरे खानदान में इतना पढ़ जाने वाला मेरा बेटा ही है।”

“अच्छा, इसीलिए पेड़े वगैरह !”

रघु को शायद मेरा ये बोलना अच्छा नहीं लगा। वो हलके से हँसा और बोला, “साहब, अगर मेरी सामर्थ्य होती तो हर साल पेड़े बाँटता। मेरा बेटा बहुत होशियार नहीं है, ये मुझे मालूम है। लेकिन वो कभी फेल नहीं हुआ और हर बार वो 2-3 प्रतिशत नंबर बढ़ाकर पास हुआ, क्या ये ख़ुशी की बात नहीं ?”

“साहब, मेरा बेटा है, इसलिए नहीं बोल रहा, लेकिन बिना सुख सुविधाओं के वो पढ़ा, अगर वो सिर्फ पास भी हो जाता, तब भी मैं पेड़े बाँटता।”

मुझे खामोश देख रघु बोला, “माफ करना साहब, अगर कुछ गलत बोल दिया हो तो। मेरे बाबा कहा करते थे कि आनंद अकेले ही मत हजम करो बल्कि सब में बाँटो। ये सिर्फ पेड़े नहीं हैं साहब – ये मेरा आनंद है!”

मेरा मन भर आया। मैं उठकर भीतरी कमरे में गया और एक सुंदर पैकेट में कुछ रुपए रखे।

भीतर से ही मैंने आवाज लगाई, “रघु, बेटे का नाम क्या है ?”

“सुनील।” बाहर से आवाज आई।

मैंने पैकेट पर लिखा – प्रिय सुनील, हार्दिक अभिनंदन ! अपने पिता की तरह सदा, आनंदित रहो !

“रघु ये लो।”

“ये किसलिए साहब ? आपने मुझसे दो मिनिट बात की, उसी में सब कुछ मिल गया।”

“ये सुनील के लिए है ! इससे उसे उसकी पसंद की पुस्तक लेकर देना।”

रघु बिना कुछ बोले पैकेट को देखता रहा।

“चाय वगैरह कुछ लोगे ?”

“नहीं साहब, और शर्मिन्दा मत कीजीए। सिर्फ इस पैकेट पर क्या लिखा है, वो बता दीजिए, क्योंकि मुझे पढ़ना नहीं आता।”

“घर जाओ और पैकेट सुनील को दो, वो पढ़कर बताएगा तुम्हें।” मैंने हँसते हुए कहा।

मेरा आभार मानता रघु चला गया लेकिन उसका आनंदित चेहरा मेरी नजरों के सामने से हटता नहीं था। आज बहुत दिनों बाद एक आनंदित और संतुष्ट व्यक्ति से मिला था।

आजकल ऐसे लोग मिलते कहाँ हैं। किसी से जरा बोलने की कोशिश करो और विवाद शुरू। मुझे उन माता पिताओं के लटके हुए चेहरे याद आए जिनके बच्चों को 90-95 प्रतिशत अंक मिले थे। अपने बेटा/बेटी को कॉलेज में एडमीशन (admission) मिलने तक उनका आनंद गायब ही रहता था।

मोगरे के फूल की खुशबू सूंघने में कितना समय लगता है ?

सूर्योदय-सूर्यास्त देखने के कितने पैसे लगते हैं ?

स्नान करते हुए अगर आपने गीत गाया, गुनगुनाया, तो कौन आपसे कॉम्पिटीशन (competition) करने आने वाला है ?

बारिश हो रही है ? बढ़िया है – जाओ भीगो उस बारिश में !

कुछ भी करने के लिए आपको मूड़(mood) लगता है क्या ?

इंसान के जन्म के समय उसकी मुट्ठियाँ बंद होती हैं।

ईश्वर ने एक हाथ में आनंद और एक में संतोष भरके भेजा है।

 

दूसरों से तुलना करते हुए

और पैसे,

और कपड़े,

और बड़ा घर,

और हाई पोजीशन,

और परसेंटेज…!

 

इस और के पीछे भागते भागते उस आनंद के झरने से कितनी दूर चले आए हम !

आइए लौट चले जीवन के यथार्थ की ओर।

हर पल का पूर्ण आनंद लें।

अपने बच्चों की मेहनत पे उत्सव मनाएं और अच्छा करने के लिए प्रेरित करें।

 

धनेश परमार ‘परम’

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पैंसठ प्रतिशत

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धनेश परमार

30 Jul 20244 min read

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पैंसठ प्रतिशत

 

बेल बजी तो द्वार खोला। द्वार पर रघु खड़ा था। रघु हमारी कॉलोनी (colony) के लोगों की गाड़ियाँ, बाइक्स वगैरह धोने का काम करता था।

“साहब, जरा काम था।”

“तुम्हारी पगार बाकी है क्या, मेरी तरफ ?”

“नहीं साहब, वो तो कब की मिल गई। पेड़े देने आया था, बेटा दसवीं पास हो गया।”

“अरे वाह ! आओ अंदर आओ।”

मैंने उसे बैठने को कहा। उसने मना किया लेकिन फिर, मेरे आग्रह पर बैठा। मैं भी उसके सामने बैठा तो उसने पेड़े का पैकेट मेरे हाथ पर रखा।

“कितने मार्क्स मिले बेटे को ?”

“पैंसठ प्रतिशत।”

“अरे वाह !” उसे खुश करने को मैं बोला।

आजकल तो ये हाल है कि, 90 प्रतिशत ना सुनो तो आदमी फेल हुआ जैसा मालूम होता है। लेकिन रघु बेहद खुश था।

“साहब, मैं बहुत खुश हूँ। मेरे खानदान में इतना पढ़ जाने वाला मेरा बेटा ही है।”

“अच्छा, इसीलिए पेड़े वगैरह !”

रघु को शायद मेरा ये बोलना अच्छा नहीं लगा। वो हलके से हँसा और बोला, “साहब, अगर मेरी सामर्थ्य होती तो हर साल पेड़े बाँटता। मेरा बेटा बहुत होशियार नहीं है, ये मुझे मालूम है। लेकिन वो कभी फेल नहीं हुआ और हर बार वो 2-3 प्रतिशत नंबर बढ़ाकर पास हुआ, क्या ये ख़ुशी की बात नहीं ?”

“साहब, मेरा बेटा है, इसलिए नहीं बोल रहा, लेकिन बिना सुख सुविधाओं के वो पढ़ा, अगर वो सिर्फ पास भी हो जाता, तब भी मैं पेड़े बाँटता।”

मुझे खामोश देख रघु बोला, “माफ करना साहब, अगर कुछ गलत बोल दिया हो तो। मेरे बाबा कहा करते थे कि आनंद अकेले ही मत हजम करो बल्कि सब में बाँटो। ये सिर्फ पेड़े नहीं हैं साहब – ये मेरा आनंद है!”

मेरा मन भर आया। मैं उठकर भीतरी कमरे में गया और एक सुंदर पैकेट में कुछ रुपए रखे।

भीतर से ही मैंने आवाज लगाई, “रघु, बेटे का नाम क्या है ?”

“सुनील।” बाहर से आवाज आई।

मैंने पैकेट पर लिखा – प्रिय सुनील, हार्दिक अभिनंदन ! अपने पिता की तरह सदा, आनंदित रहो !

“रघु ये लो।”

“ये किसलिए साहब ? आपने मुझसे दो मिनिट बात की, उसी में सब कुछ मिल गया।”

“ये सुनील के लिए है ! इससे उसे उसकी पसंद की पुस्तक लेकर देना।”

रघु बिना कुछ बोले पैकेट को देखता रहा।

“चाय वगैरह कुछ लोगे ?”

“नहीं साहब, और शर्मिन्दा मत कीजीए। सिर्फ इस पैकेट पर क्या लिखा है, वो बता दीजिए, क्योंकि मुझे पढ़ना नहीं आता।”

“घर जाओ और पैकेट सुनील को दो, वो पढ़कर बताएगा तुम्हें।” मैंने हँसते हुए कहा।

मेरा आभार मानता रघु चला गया लेकिन उसका आनंदित चेहरा मेरी नजरों के सामने से हटता नहीं था। आज बहुत दिनों बाद एक आनंदित और संतुष्ट व्यक्ति से मिला था।

आजकल ऐसे लोग मिलते कहाँ हैं। किसी से जरा बोलने की कोशिश करो और विवाद शुरू। मुझे उन माता पिताओं के लटके हुए चेहरे याद आए जिनके बच्चों को 90-95 प्रतिशत अंक मिले थे। अपने बेटा/बेटी को कॉलेज में एडमीशन (admission) मिलने तक उनका आनंद गायब ही रहता था।

मोगरे के फूल की खुशबू सूंघने में कितना समय लगता है ?

सूर्योदय-सूर्यास्त देखने के कितने पैसे लगते हैं ?

स्नान करते हुए अगर आपने गीत गाया, गुनगुनाया, तो कौन आपसे कॉम्पिटीशन (competition) करने आने वाला है ?

बारिश हो रही है ? बढ़िया है – जाओ भीगो उस बारिश में !

कुछ भी करने के लिए आपको मूड़(mood) लगता है क्या ?

इंसान के जन्म के समय उसकी मुट्ठियाँ बंद होती हैं।

ईश्वर ने एक हाथ में आनंद और एक में संतोष भरके भेजा है।

 

दूसरों से तुलना करते हुए

और पैसे,

और कपड़े,

और बड़ा घर,

और हाई पोजीशन,

और परसेंटेज…!

 

इस और के पीछे भागते भागते उस आनंद के झरने से कितनी दूर चले आए हम !

आइए लौट चले जीवन के यथार्थ की ओर।

हर पल का पूर्ण आनंद लें।

अपने बच्चों की मेहनत पे उत्सव मनाएं और अच्छा करने के लिए प्रेरित करें।

 

धनेश परमार ‘परम’

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