
सागर

सागर
हर सुबह सूरज, उगता है उसके सामने,
दिन भर निहारता है अपना अक्स
फिर कहीं छुप जाता है।
क्या है समंदर के सीने में ,
चाँद जानने को बेताब नजर आता है
हर शाम, आसमां की खिड़की पर चढ़ आता है ।
हवा मचलती सी चलकर आती है
इठलाती है, खेलती है लहरों से मिलकर
नमी चुराकर उठती है, और ठंडी सी हो जाती है।
आती हुई लहरें सुनो, कुछ तो कहती हैं
सागर से उठना, सागर में समां जाना है
हम आए जहाँ से, वहीं जाना है
इस आने जाने के दरमियान ही
जिंदगी का सारा फसाना है ।
मीनू यतिन
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