
मेरे भोले भंडारी
भोले भंडारी
हे शंभू, मेरे भोले नाथ।
क्यों ढूंढो मैं तुम्हें मंदिरों में,
जब तुम बैठे मेरे दिल में,ऐ भंडारी।
अपने शिव को मैं सब में ढूंढ ही लेती हूं ।
सोच तुम्हें जाने क्यों आंख भर आती है।
लगता तुमने सर पर अपना हाथ रखा हो जैसे।
रम जाऊं तेरे रंग में, बस यही आस है अब मेरी।
बन जाओ भस्म मैं, और बस जाऊं तेरे चरणों में।
तुम हो वो कस्तूरी जिसे हम ढूंढते फिरते हैं।
तुम तो हो हर सांस में, हर विश्वास में।
हर ठोकर में तुम, और सहारा में भी तुम।
तुम्हें छोड़ और क्या ही मांगू मैं,ऐ भंडारी।
सोच तुम्हें जाने क्यों मन शांत हो जाता है।
बस इस दिल से आह निकल रही है, उसे जोड़े रखना,
है तेरा ही सहारा, बस यह साथ बनाए रखना।
रचयिता, स्वेता गुप्ता
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