जज़्बात

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sweta gupta

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

जज़्बात

 

जज्बातों को दिल में छुपाए फिरते हैं,

उन लम्हों को पलकों में बिछाए रखते हैं,

दर्द हो तो होटों को सी लिया करते हैं,

बेचैनियों को चुप्पी में दबाएं रखते हैं।

 

वो कहते हैं कि क्यों, बयां नहीं करते हाले दिल अपना,

वो कहते हैं कि क्यों, बयां नहीं करते हाले दिल अपना…

लफ्जों को छोड़, हम अश्कों मैं बयां करते हैं।

सोचते हैं कि अब, एहसास होगा उन्हें मेरी तरप का मगर,

वो हर बार हंसी में उड़ा दिया करते हैं।

 

जिंदगी अब ऐसे मझधार में आ गई है,

वो कहते हैं कि तुम्हें चीजों की समझ थोड़ी कम है,

हम मुस्कुरा कर सर झुका लिया करते हैं।

 

उम्मीदों की कश्ती को किनारा मिल जाए,

भटके राही को सहारा मिल जाए,

किस्मत से लड़ना छोड़ दिया हमने,

खुदा से रिश्ता जोड़ लिया हमने।

 

रचयिता,

श्वेता गुप्ता

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जज़्बात

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sweta gupta

28 Jul 20241 min read

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जज़्बात

 

जज्बातों को दिल में छुपाए फिरते हैं,

उन लम्हों को पलकों में बिछाए रखते हैं,

दर्द हो तो होटों को सी लिया करते हैं,

बेचैनियों को चुप्पी में दबाएं रखते हैं।

 

वो कहते हैं कि क्यों, बयां नहीं करते हाले दिल अपना,

वो कहते हैं कि क्यों, बयां नहीं करते हाले दिल अपना…

लफ्जों को छोड़, हम अश्कों मैं बयां करते हैं।

सोचते हैं कि अब, एहसास होगा उन्हें मेरी तरप का मगर,

वो हर बार हंसी में उड़ा दिया करते हैं।

 

जिंदगी अब ऐसे मझधार में आ गई है,

वो कहते हैं कि तुम्हें चीजों की समझ थोड़ी कम है,

हम मुस्कुरा कर सर झुका लिया करते हैं।

 

उम्मीदों की कश्ती को किनारा मिल जाए,

भटके राही को सहारा मिल जाए,

किस्मत से लड़ना छोड़ दिया हमने,

खुदा से रिश्ता जोड़ लिया हमने।

 

रचयिता,

श्वेता गुप्ता

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