सीखना और सिखाना

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

सीखना और सिखाना

वो सीखने आते है,

सीखते जाते है,

पर सीखते सीखते,

संयम खो देते है,

और सिखाने बैठ जाते है।

 

कौन गुरु, कौन चेला,

यह समझ में ना आता है,

मकसद, सीखना, समझना था,

या परीक्षा लेना,

मन में यह सवाल

घर कर जाता है।

 

पढ़ाई, सब्र का खेल है पूरा।

पढ़ाई, सब्र का खेल है पूरा।

संयम, मनन, चिंतन और

आत्म परीक्षण के बिना,

हर ज्ञान है, अधूरा।

 

मैने भी, सदियों,

अपने गुरू की

चरणों में रहकर

यही सीखा है,

कहाँ उन्होंने मेरे लिए,

अलग नियम लिखा है।

 

दो आंखे, दो कान,

पर मुँह एक,

प्रकृति के यह गुण

भी यही हमें

समझाते हैं।

देखे और सुने ज्यादा,

बात तभी समझ आते है।

 

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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सीखना और सिखाना

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dineshkumar singh

28 Jul 20241 min read

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सीखना और सिखाना

वो सीखने आते है,

सीखते जाते है,

पर सीखते सीखते,

संयम खो देते है,

और सिखाने बैठ जाते है।

 

कौन गुरु, कौन चेला,

यह समझ में ना आता है,

मकसद, सीखना, समझना था,

या परीक्षा लेना,

मन में यह सवाल

घर कर जाता है।

 

पढ़ाई, सब्र का खेल है पूरा।

पढ़ाई, सब्र का खेल है पूरा।

संयम, मनन, चिंतन और

आत्म परीक्षण के बिना,

हर ज्ञान है, अधूरा।

 

मैने भी, सदियों,

अपने गुरू की

चरणों में रहकर

यही सीखा है,

कहाँ उन्होंने मेरे लिए,

अलग नियम लिखा है।

 

दो आंखे, दो कान,

पर मुँह एक,

प्रकृति के यह गुण

भी यही हमें

समझाते हैं।

देखे और सुने ज्यादा,

बात तभी समझ आते है।

 

 

रचयिता- दिनेश कुमार सिंह

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