बारिश और चाय

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dineshkumar singh

12 Aug 20242 min read

Published in stories

बारिश और चाय

 

बारिश धीरे धीरे ज़ोर पकड़ रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट में बिजली रह रह कर कौंध रही थी। तेज गर्मी के बाद, मानसून का आना बड़ा अच्छा लगता है। मिट्टी की सोंधी सोंधी सुगंध नाक में समा गई। अचानक पुरा मौसम बदल गया। एक ताजगी का अनुभव होने लगा।

 

पर कुछ तो कम लग रहा था। अरे हाँ, चाय!

 

ऐसे मौसम में चाय पीने का मजा ही कुछ और हैं। चाय की याद आते ही, चेहरा खिल गया। पर मजा, चाय पीने का है, बनाने का नहीं। कमरे से बाहर झाँक कर देखा। श्रीमती जी रसोईं में, कुछ कर रही थी। अचानक उनकी नजर पड़ी और इशारे से पूछा क्या हुआ। सकुचाते हुए पूछा एक कप, अदरक वाली चाय मिलेगी? उन्हें आश्चर्य तो हुआ, पर पता था की पतिदेव “चहेडी” है, तो हाँ में सिर हिला दिया।

 

मैं भी, लैपटॉप से हटकर खिड़की के बाहर का नजारा देखने में डूब गया। अचानक आवाज़ आईं, चाय! अरे वाह, कप से उठते धुँए को देख दिल खुश हो गया।  बाहर पानी की बूंदे धुंधला मौसम बनाकर रखी थी और अंदर हाथ में गर्म चाय की प्याली।

 

मैंने चहकते हुए शुक्रिया कहा, तब तक वो अपने धुन में चली गईं।

 

अब सिर्फ हम थे – मैं, खुशगवार मौसम और चाय की प्याली। 

 

 

दिनेश कुमार सिंह

 

 

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12 Aug 20242 min read

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बारिश और चाय

 

बारिश धीरे धीरे ज़ोर पकड़ रही थी। बादलों की गड़गड़ाहट में बिजली रह रह कर कौंध रही थी। तेज गर्मी के बाद, मानसून का आना बड़ा अच्छा लगता है। मिट्टी की सोंधी सोंधी सुगंध नाक में समा गई। अचानक पुरा मौसम बदल गया। एक ताजगी का अनुभव होने लगा।

 

पर कुछ तो कम लग रहा था। अरे हाँ, चाय!

 

ऐसे मौसम में चाय पीने का मजा ही कुछ और हैं। चाय की याद आते ही, चेहरा खिल गया। पर मजा, चाय पीने का है, बनाने का नहीं। कमरे से बाहर झाँक कर देखा। श्रीमती जी रसोईं में, कुछ कर रही थी। अचानक उनकी नजर पड़ी और इशारे से पूछा क्या हुआ। सकुचाते हुए पूछा एक कप, अदरक वाली चाय मिलेगी? उन्हें आश्चर्य तो हुआ, पर पता था की पतिदेव “चहेडी” है, तो हाँ में सिर हिला दिया।

 

मैं भी, लैपटॉप से हटकर खिड़की के बाहर का नजारा देखने में डूब गया। अचानक आवाज़ आईं, चाय! अरे वाह, कप से उठते धुँए को देख दिल खुश हो गया।  बाहर पानी की बूंदे धुंधला मौसम बनाकर रखी थी और अंदर हाथ में गर्म चाय की प्याली।

 

मैंने चहकते हुए शुक्रिया कहा, तब तक वो अपने धुन में चली गईं।

 

अब सिर्फ हम थे – मैं, खुशगवार मौसम और चाय की प्याली। 

 

 

दिनेश कुमार सिंह

 

 

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