दिनभर के किस्से

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dineshkumar singh

21 Jul 20241 min read

Published in poetry

दिनभर के किस्से

दिनभर में कई
कहानियाँ है।
कुछ छोटे छोटे,
पल भर के
कुछ सालों चलते 
रहने वाले हैं।।

कुछ किस्से, चिर परिचित से,
कुछ बेगानो से होते हैं।
कुछ के किरदार हम खुद,
कुछ के अनजाने लोग होते हैं।

कुछ किस्से मैं लिखता हूँ,
पर ज्यादातर किस्सो में
दर्शक बनकर रह जाता हूँ। 

कुछ किस्सो में, सिर्फ शोरगुल,
कुछ किस्सो में, उदासी
रहती है।

कुछ किस्से सिर्फ भीड़ का
हिस्सा भर,
कुछ में ठहाकों की हँसी
गूँजती है।

दिनभर के इन किस्सों को
रख सिरहाने, रात को मैं
सो जाता हूँ।
कुछ चुने हुए किस्सो को
सपनों की दुनिया में फिर
दुहराता हूँ।

रचयिता दिनेश कुमार सिंह

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दिनभर के किस्से

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dineshkumar singh

21 Jul 20241 min read

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दिनभर के किस्से

दिनभर में कई
कहानियाँ है।
कुछ छोटे छोटे,
पल भर के
कुछ सालों चलते 
रहने वाले हैं।।

कुछ किस्से, चिर परिचित से,
कुछ बेगानो से होते हैं।
कुछ के किरदार हम खुद,
कुछ के अनजाने लोग होते हैं।

कुछ किस्से मैं लिखता हूँ,
पर ज्यादातर किस्सो में
दर्शक बनकर रह जाता हूँ। 

कुछ किस्सो में, सिर्फ शोरगुल,
कुछ किस्सो में, उदासी
रहती है।

कुछ किस्से सिर्फ भीड़ का
हिस्सा भर,
कुछ में ठहाकों की हँसी
गूँजती है।

दिनभर के इन किस्सों को
रख सिरहाने, रात को मैं
सो जाता हूँ।
कुछ चुने हुए किस्सो को
सपनों की दुनिया में फिर
दुहराता हूँ।

रचयिता दिनेश कुमार सिंह

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