सब्र ना कर।

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sweta gupta

22 Aug 20241 min read

Published in poetry

सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?

 

अधूरे रिश्ते,अधूरे वादे,
पर कितना डटे रहूं मैं ?
आंख मूंदे, सपने को सीते,
और कब तक हठ करू मैं ?
विरहा की अग्नि में खुदको जलाकर,
और कब तक मलहम करू मैं ? 

 

सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?

 

वक्त गुजरे, कोई उसको रोको,
और कब तक, परखते रहूँ मैं ?
हर कोई तेजी से बढ़ते, 
और कब तक, विलंब करू मैं ?

 

सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करूं मैं ?

 

सब्र का बांध अब टूटा जाए,
रिश्ते नाते, सब छूटा जाए ।
सब्र छोड़, स्वयं को अपनाले तू,
किस्मत का रोना छोड़, उठा हथियार, अब लिखता चल,
डटे रहे तू, मलहम लगाकर,
विलंब न कर,
अब उठजा तू।

जीत निश्चित है, अब डर मत  तू ।
अब और ,सब्र ना करे तू,
अब और सब्र ना करे तू ।।

रचयिता – स्वेता गुप्ता 

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सब्र ना कर।

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sweta gupta

22 Aug 20241 min read

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सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?

 

अधूरे रिश्ते,अधूरे वादे,
पर कितना डटे रहूं मैं ?
आंख मूंदे, सपने को सीते,
और कब तक हठ करू मैं ?
विरहा की अग्नि में खुदको जलाकर,
और कब तक मलहम करू मैं ? 

 

सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?

 

वक्त गुजरे, कोई उसको रोको,
और कब तक, परखते रहूँ मैं ?
हर कोई तेजी से बढ़ते, 
और कब तक, विलंब करू मैं ?

 

सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करूं मैं ?

 

सब्र का बांध अब टूटा जाए,
रिश्ते नाते, सब छूटा जाए ।
सब्र छोड़, स्वयं को अपनाले तू,
किस्मत का रोना छोड़, उठा हथियार, अब लिखता चल,
डटे रहे तू, मलहम लगाकर,
विलंब न कर,
अब उठजा तू।

जीत निश्चित है, अब डर मत  तू ।
अब और ,सब्र ना करे तू,
अब और सब्र ना करे तू ।।

रचयिता – स्वेता गुप्ता 

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