
सब्र ना कर।
सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?
अधूरे रिश्ते,अधूरे वादे,
पर कितना डटे रहूं मैं ?
आंख मूंदे, सपने को सीते,
और कब तक हठ करू मैं ?
विरहा की अग्नि में खुदको जलाकर,
और कब तक मलहम करू मैं ?
सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करू मैं ?
वक्त गुजरे, कोई उसको रोको,
और कब तक, परखते रहूँ मैं ?
हर कोई तेजी से बढ़ते,
और कब तक, विलंब करू मैं ?
सब्र करो, सब कहते हैं मुझसे,
पर कितना सब्र करूं मैं ?
सब्र का बांध अब टूटा जाए,
रिश्ते नाते, सब छूटा जाए ।
सब्र छोड़, स्वयं को अपनाले तू,
किस्मत का रोना छोड़, उठा हथियार, अब लिखता चल,
डटे रहे तू, मलहम लगाकर,
विलंब न कर,
अब उठजा तू।
जीत निश्चित है, अब डर मत तू ।
अब और ,सब्र ना करे तू,
अब और सब्र ना करे तू ।।
रचयिता – स्वेता गुप्ता
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