शिकायत है तुमसे, दोस्त!

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dineshkumar singh

25 Aug 20241 min read

Published in poetry

शिकायत है तुमसे, दोस्त!

हाँ पता है कि जाना है सभी को एक दिन,
पर बेवक्त चले जाना, क्या गलत बात नहीं?

गुजरे जमाने में शामिल हुए थे कुछ लोग अपने,
वक़्त गुजरते दूर सभी हो गए।
पर इतना दूर हो जाना, क्या गलत बात नहीं?

 गूंजती है तेरी आवाज़ आज भी दोस्त,
मन मसोस कर रह जाता है।
ये तराना, आधा ही सुनाना, क्या गलत बात नहीं?

ये शिकायत है तुमसे, मैं जीवन जीने में,
मशगूल शायद ज्यादा हो गया।
पर तुम्हारा यूँ खामोश हो जाना, क्या गलत बात नहीं? 

अब कहाँ से लौटा के लाऊँ तुम्हें?
क्या खोया है, कैसे समझाऊ तुम्हें?
बस एक अधूरी ग़ज़ल बन कर रह गईं
ये मुलाकात, आवाज़ में गूँथकर,
कैसे सुन पाऊँ तुम्हें?
महफ़िल आधी छोड़ जाना, क्या गलत बात नहीं?

हाँ पता है कि जाना है सभी को एक दिन,
पर बेवक्त चले जाना, क्या गलत बात नहीं?

रचयिता-
दिनेश कुमार सिंह

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शिकायत है तुमसे, दोस्त!

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dineshkumar singh

25 Aug 20241 min read

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शिकायत है तुमसे, दोस्त!

हाँ पता है कि जाना है सभी को एक दिन,
पर बेवक्त चले जाना, क्या गलत बात नहीं?

गुजरे जमाने में शामिल हुए थे कुछ लोग अपने,
वक़्त गुजरते दूर सभी हो गए।
पर इतना दूर हो जाना, क्या गलत बात नहीं?

 गूंजती है तेरी आवाज़ आज भी दोस्त,
मन मसोस कर रह जाता है।
ये तराना, आधा ही सुनाना, क्या गलत बात नहीं?

ये शिकायत है तुमसे, मैं जीवन जीने में,
मशगूल शायद ज्यादा हो गया।
पर तुम्हारा यूँ खामोश हो जाना, क्या गलत बात नहीं? 

अब कहाँ से लौटा के लाऊँ तुम्हें?
क्या खोया है, कैसे समझाऊ तुम्हें?
बस एक अधूरी ग़ज़ल बन कर रह गईं
ये मुलाकात, आवाज़ में गूँथकर,
कैसे सुन पाऊँ तुम्हें?
महफ़िल आधी छोड़ जाना, क्या गलत बात नहीं?

हाँ पता है कि जाना है सभी को एक दिन,
पर बेवक्त चले जाना, क्या गलत बात नहीं?

रचयिता-
दिनेश कुमार सिंह

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