
शून्य
शून्य
अकेला था,
अकेला हूँ।
जहाँ से शुरू हुआ
फिर वहीं आ पहुंचा हूँ।
खुशी की तलाश में
कई जगह भटका,
आखिर में खुद के
पास ही लौटा हूँ।
शून्य से शुरू कर
कई पायदान चढ़ा।
आज गिरकर,
फिर शून्य पर
आ रुका हूँ।
कई बार
कई लोगों से मिला,
दिल मिला,
प्यार भी बढ़ा,
रिश्ते बढ़े,
महफिले भी सजी।
पर कभी गुस्से तो
कभी अहम का,
कभी बेवजह
बेवकूफी तो
कभी वहम का।
कभी उनके या
कभी अपने कमियों का,
कभी कुछ गलतफहमियों का
शिकार हो चला हूँ।
प्रश्न यह है कि
आगे क्या,
कब, और कहाँ।
कोई जवाब नहीं है।
ऐसी परिस्थिति में
उलझा हूँ।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
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