मन के गुब्बारे

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sweta gupta

1 Aug 20241 min read

Published in poetry

मन के गुब्बारे

 

लिखा करो, लिखा करो,

मन के गुब्बारे को लिखा करो।

 

कितने हैं खयालात उसे देखा करो,

असमंजस के डोर से ना बांधा करो।

 

खोल हर जज़्बात,उसे जिया करो,

जो होना वो हालात,ना उसे छेड़ा करो।

 

संवालातो के घेरे में,ना खुदको डुबाया करो,

बांध उस गुब्बारे को,आसमान में छोड़ दिया करो।

 

मन का सारा बोझ जितना,उसमें निकाल दिया करो,

मन को बेख्याली पतंग सा,उड़ा दिया करो।

 

वक्त रहते उस गुब्बारे को,ना बड़ा किया करो,

लिख-लिख कर,मन को हल्का कर दिया करो।

 

बैठ कहीं,उस गुब्बारे को उड़ते देखा करो ,

उस नज़ारे को देख,मस्ती में झूमा करो।

 

प्रेम से नए गुब्बारे को भरा करो,

नवीन विचारों से उसे सजाया करो।

 

मन के बचपने को,समझदारी का पाठ ना पढ़ाया करो,

बेपरवाह मन को,तुम नये पंख बस दे दिया करो।

 

जिया करो,जिया करो,हे जिंदगी एक,उसे जिया करो।

हैं ग़म चाहे कितने भी,मगर उसे ना पिया करो ।

 

हैं सिख सभी को यही दिया करो,

खुदको ना तुम युं फिका किया करो।

 

खिलखिलाते रंगों से उसे भरा करो,

हो रौनक ऐसी बस यूं ही मुस्कुराया करो।

 

लिखा करो, लिखा करो,

मन के गुब्बारे को लिखा करो।

 

 

 

रचयिता, स्वेता गुप्ता

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मन के गुब्बारे

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sweta gupta

1 Aug 20241 min read

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मन के गुब्बारे

 

लिखा करो, लिखा करो,

मन के गुब्बारे को लिखा करो।

 

कितने हैं खयालात उसे देखा करो,

असमंजस के डोर से ना बांधा करो।

 

खोल हर जज़्बात,उसे जिया करो,

जो होना वो हालात,ना उसे छेड़ा करो।

 

संवालातो के घेरे में,ना खुदको डुबाया करो,

बांध उस गुब्बारे को,आसमान में छोड़ दिया करो।

 

मन का सारा बोझ जितना,उसमें निकाल दिया करो,

मन को बेख्याली पतंग सा,उड़ा दिया करो।

 

वक्त रहते उस गुब्बारे को,ना बड़ा किया करो,

लिख-लिख कर,मन को हल्का कर दिया करो।

 

बैठ कहीं,उस गुब्बारे को उड़ते देखा करो ,

उस नज़ारे को देख,मस्ती में झूमा करो।

 

प्रेम से नए गुब्बारे को भरा करो,

नवीन विचारों से उसे सजाया करो।

 

मन के बचपने को,समझदारी का पाठ ना पढ़ाया करो,

बेपरवाह मन को,तुम नये पंख बस दे दिया करो।

 

जिया करो,जिया करो,हे जिंदगी एक,उसे जिया करो।

हैं ग़म चाहे कितने भी,मगर उसे ना पिया करो ।

 

हैं सिख सभी को यही दिया करो,

खुदको ना तुम युं फिका किया करो।

 

खिलखिलाते रंगों से उसे भरा करो,

हो रौनक ऐसी बस यूं ही मुस्कुराया करो।

 

लिखा करो, लिखा करो,

मन के गुब्बारे को लिखा करो।

 

 

 

रचयिता, स्वेता गुप्ता

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