मेरे बचपन

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arati samant

29 Jul 20242 min read

Published in poetry

मेरे बचपन

आज सोचूँ तो लगता है,  कि जैसे सपना ही था,
पर कैसे कर दूं पराया, हाय! वो बचपन अपना ही था ।
गली-गली मचाते थे हुड़दंग, कोई डरपोक था तो कोई दबंग,
दिन भर धूप में खेलकर, शाम को पेड़ की छांव में समा जाओ।
कहाँ गए तुम मेरे बचपन, वापस लौट आओ । २

आज बेशक हमारी सवारी है, ऑटो उबर और ओला,
पर कभी मीलों चलते थे कंधे में लटकाए स्कूल का झोला,
विद्यालय से लेकर घर तक दोस्तों की थी लंबी टोली,
अपना दिल खोल कर रखने वाली, प्यारी सखियां हमजोली।
अब कहाँ वो अल्हड़ सी बेफिक्री, बस सलीके से पेश आओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन,  वापस लौट आओ ।

पहले गर्मी की छुट्टियों का रहता था साल भर इंतजार,
अब जिम्मेदारियो के बीच, चुपके से चला जाता है इतवार।
कंचे, क्रिकेट,पतंग,लट्टू, और बैडमिंटन खेलने को पूरा दिन कम पड़ जाता था।
लूडो,चल्लस साठ, नया व्यापारी,सांप सीढ़ी खेलने में क्या कम मजा आता था?
आज मनोरंजन के नाम पर, सिर्फ ये मोबाइल है, लो इसे ही चलाओ
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ।

ईद, दिवाली, क्रिसमस,  दही हंडी, के त्योहार लगते कितने निराले थे।
3-4 दिनों तक होली के रंगो मे रंगे, गली-गली घूमते हम मतवाले थे
सभी त्योहार थे साथ मे मनाते, मज़हब की कोई दीवार नहीं
अब न जाने कैसे समझदार हो गये हैं, कि भाई को भाई से प्यार नहीं
गर एहसास हो अकेलेपन का, तो जाओ बचपन की गलियों मे घूम आओ
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ।

घूम आये बड़े बड़े मॉल  पर वो मेले वाली खुशी नहीं मिलती,
चवन्नी पाकर महसूस होनेवाली अमीरी, अब हजारों कमाकर भी मुकम्मल नहीं होती।
क्यों बारिश में भीगने से अब डर लगता है?
क्यों बचपन जैसे लापरवाह भीगने की चाह नहीं होती ?
कोई तो कहे भीग लो बारिश में,  झूमो, शर्म को छोड़ आओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ ।

आने वाला कल अच्छा होगा इसलिए बड़े होने को उतावले थे ।
ये सोचा न था कि बचपन फिर लौटकर नहीं आएगा, हाय! हम भी कितने बावले थे।
सभी दोस्त थे हमारे, ना कोई अमीर गरीब, ना कोई काले गोरे न सांवले थे ।
पिज़्ज़ा, बर्गर, मोमोस, में वो बात कहां, जितने स्वादिष्ट लाल इमली, बेर और आंवले थे।
जीने के ये मॉर्डन तरीके तुम्हें बहका न दे, चलो यादों के साये में छुप जाओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन, वापस लौट आओ। 2

 

 

आरती सामंत

 

https://www.pexels.com/photo/photo-of-kids-playing-chinese-garter-4119962/

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आज सोचूँ तो लगता है,  कि जैसे सपना ही था,
पर कैसे कर दूं पराया, हाय! वो बचपन अपना ही था ।
गली-गली मचाते थे हुड़दंग, कोई डरपोक था तो कोई दबंग,
दिन भर धूप में खेलकर, शाम को पेड़ की छांव में समा जाओ।
कहाँ गए तुम मेरे बचपन, वापस लौट आओ । २

आज बेशक हमारी सवारी है, ऑटो उबर और ओला,
पर कभी मीलों चलते थे कंधे में लटकाए स्कूल का झोला,
विद्यालय से लेकर घर तक दोस्तों की थी लंबी टोली,
अपना दिल खोल कर रखने वाली, प्यारी सखियां हमजोली।
अब कहाँ वो अल्हड़ सी बेफिक्री, बस सलीके से पेश आओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन,  वापस लौट आओ ।

पहले गर्मी की छुट्टियों का रहता था साल भर इंतजार,
अब जिम्मेदारियो के बीच, चुपके से चला जाता है इतवार।
कंचे, क्रिकेट,पतंग,लट्टू, और बैडमिंटन खेलने को पूरा दिन कम पड़ जाता था।
लूडो,चल्लस साठ, नया व्यापारी,सांप सीढ़ी खेलने में क्या कम मजा आता था?
आज मनोरंजन के नाम पर, सिर्फ ये मोबाइल है, लो इसे ही चलाओ
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ।

ईद, दिवाली, क्रिसमस,  दही हंडी, के त्योहार लगते कितने निराले थे।
3-4 दिनों तक होली के रंगो मे रंगे, गली-गली घूमते हम मतवाले थे
सभी त्योहार थे साथ मे मनाते, मज़हब की कोई दीवार नहीं
अब न जाने कैसे समझदार हो गये हैं, कि भाई को भाई से प्यार नहीं
गर एहसास हो अकेलेपन का, तो जाओ बचपन की गलियों मे घूम आओ
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ।

घूम आये बड़े बड़े मॉल  पर वो मेले वाली खुशी नहीं मिलती,
चवन्नी पाकर महसूस होनेवाली अमीरी, अब हजारों कमाकर भी मुकम्मल नहीं होती।
क्यों बारिश में भीगने से अब डर लगता है?
क्यों बचपन जैसे लापरवाह भीगने की चाह नहीं होती ?
कोई तो कहे भीग लो बारिश में,  झूमो, शर्म को छोड़ आओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन वापस लौट आओ ।

आने वाला कल अच्छा होगा इसलिए बड़े होने को उतावले थे ।
ये सोचा न था कि बचपन फिर लौटकर नहीं आएगा, हाय! हम भी कितने बावले थे।
सभी दोस्त थे हमारे, ना कोई अमीर गरीब, ना कोई काले गोरे न सांवले थे ।
पिज़्ज़ा, बर्गर, मोमोस, में वो बात कहां, जितने स्वादिष्ट लाल इमली, बेर और आंवले थे।
जीने के ये मॉर्डन तरीके तुम्हें बहका न दे, चलो यादों के साये में छुप जाओ।
कहां गए तुम मेरे बचपन, वापस लौट आओ। 2

 

 

आरती सामंत

 

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