स्त्रीत्व दोस्ती

Avatar
धनेश परमार

17 Aug 20244 min read

Published in perspectives

स्त्रीत्व दोस्ती

दोस्ती दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत रिश्ता होता है। ये वो रिश्ता होता है जो बिना स्वार्थ के निभाया जाता है। हर इंसान के जीवन में कुछ बहुत ख़ास दोस्त होते हैं जिनसे वो अपने दिल की हर बात शेयर करता है। कहा जाता है वो इंसान दुनिया का सबसे गरीब इंसान होता है जिसके दोस्त नहीं होते। दोस्ती जीवन का वो रिश्ता होता है जो जीवन भर हर मुश्किल घड़ी में आपके साथ रहता है। हर मुश्किल हर परेशानी में दोस्त ही एक दुसरे का साथ निभाते हैं।

“घर की औरतें सास, बहू, देवरानी, जेठानी और ननद तो बन जाती है पर दोस्त नहीं बन पाती।” हाल में रिलीज हुई फिल्म “लापता लेडिज़” फिल्म का यह डायलोग अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।

एक छत के नीचे रहने वाली स्त्रियां एक-दुसरे के साथ कितने रिश्ते निभाती है लेकिन यदि वह परस्पर दोस्त बन जाए तो उस घर-परिवार का ही नहीं, स्वयं का भी जीवन सुखमय बना सकती है। एक-दुसरे की तरक्की के कारक बन सकती है और एक बेजोड़ संबंध के साथ समग्र नारीत्व को एक नई दिशा प्रदान कर सकती है।

दोस्ती की सभी को जरूरत है, पहल करना कठिन है। इसकी वजह यह है कि समाज को प्रत्येक संबंध को रूढ़िबद्ध रीत से देखने की आदत हो गई है। दीकरी ससुराल जाए इससे पहले ही उनके दिमाग में बहुत सारी ग्रंथियां स्थापित कर दी जाती है। सास ऐसी होती है, ननद ऐसी होती है। दूसरी ओर आजकल की बहुएं तो ऐसी ही होती है, अतः इसे थोड़ी ज्यादा दबाकर ही रखनी चाहिए। ऐसी ग्रंथियों के कारण आर्गेनिकली जिस संबंध को पनपने देना चाहिए ऐसा होता नहीं है। इस ग्रंथियों को तोड़ने की आवश्यकता है। 

स्त्री का स्त्री की दोस्त बनने के लिए पहला कदम है सुस्पष्टता या स्पष्टवादी। जब आप एकदम स्पष्टता से सामने वाली व्यक्ति से अपने मन की बात कर सको तो सामने वाली व्यक्ति आपको अवश्य समझेगी। दूसरा यह कि माना की आपके लिए किसीने ताली नहीं बजाई, तो लोग कब ताली बजाएंगे इस प्रतीक्षा करते हुए भी आप दूसरे के लिए ताली बजा सकते हैं। इसके लिए स्त्री को थोड़ा उदार होना पड़ेगा।

दोस्ती में तो बराबरी रहती है। सच्चा दोस्त वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दर्शाए, जो अवगुणों को गुण बताए वो तो खुशामदी है। सच्चे दोस्त के सामने दुःख आधा और हर्ष दुगुना प्रतीत होता है। दोस्त के लिए जीवनदान उतना कठिन नहीं है जितना कठिन कि ऐसा दोस्त खोजना जिसके लिए जीवन दान दिया जा सके।

सच्चे दोस्त हमें कभी गिरने नहीं देते, ना किसी की नजरों में और ना किसी के कदमों में ! मतलबी कभी अच्छा दोस्त नहीं हो सकता, और अच्छा दोस्त कभी मतलबी नहीं हो सकता! जिंदगी में दोस्त कम ही बनाइए, लेकिन दोस्ती जिंदगी भर निभाइए !

मुझे जो नहीं मिला वह तुझे मिले तो अच्छी बात है, तुम आगे बढ़ो। यह उदारता ही है जो वर्षों से आगे बढ़ने प्रयासरत स्त्री जाति की गति को वेग देगी। मैं बैठी हूं तु कर। इस प्रकार का बिनशरती साथ जब एक स्त्री दूसरी स्त्री को देगी तब वह अपेक्षारहित सुंदर दोस्ती होगी। यदि आप किसी को फूल गिफ्ट करते हैं तो उसकी सुगंध आपके हाथमें रह जाती है और वह आपके हाथ को ही नहीं आपके संबंध को भी महकाती है।

अतः आइए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम संकल्प करें कि अपने आसपास की सभी महिलाओं के विकास में हम भी सहभागी बनें और उनकी तरक्की से स्वयं को भी गौरवान्वित महसूस करें।

सभी माताओं और बहनों को

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

धनेश परमार “परम”

Comments (0)

Please login to share your comments.



स्त्रीत्व दोस्ती

Avatar
धनेश परमार

17 Aug 20244 min read

Published in perspectives

स्त्रीत्व दोस्ती

दोस्ती दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत रिश्ता होता है। ये वो रिश्ता होता है जो बिना स्वार्थ के निभाया जाता है। हर इंसान के जीवन में कुछ बहुत ख़ास दोस्त होते हैं जिनसे वो अपने दिल की हर बात शेयर करता है। कहा जाता है वो इंसान दुनिया का सबसे गरीब इंसान होता है जिसके दोस्त नहीं होते। दोस्ती जीवन का वो रिश्ता होता है जो जीवन भर हर मुश्किल घड़ी में आपके साथ रहता है। हर मुश्किल हर परेशानी में दोस्त ही एक दुसरे का साथ निभाते हैं।

“घर की औरतें सास, बहू, देवरानी, जेठानी और ननद तो बन जाती है पर दोस्त नहीं बन पाती।” हाल में रिलीज हुई फिल्म “लापता लेडिज़” फिल्म का यह डायलोग अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।

एक छत के नीचे रहने वाली स्त्रियां एक-दुसरे के साथ कितने रिश्ते निभाती है लेकिन यदि वह परस्पर दोस्त बन जाए तो उस घर-परिवार का ही नहीं, स्वयं का भी जीवन सुखमय बना सकती है। एक-दुसरे की तरक्की के कारक बन सकती है और एक बेजोड़ संबंध के साथ समग्र नारीत्व को एक नई दिशा प्रदान कर सकती है।

दोस्ती की सभी को जरूरत है, पहल करना कठिन है। इसकी वजह यह है कि समाज को प्रत्येक संबंध को रूढ़िबद्ध रीत से देखने की आदत हो गई है। दीकरी ससुराल जाए इससे पहले ही उनके दिमाग में बहुत सारी ग्रंथियां स्थापित कर दी जाती है। सास ऐसी होती है, ननद ऐसी होती है। दूसरी ओर आजकल की बहुएं तो ऐसी ही होती है, अतः इसे थोड़ी ज्यादा दबाकर ही रखनी चाहिए। ऐसी ग्रंथियों के कारण आर्गेनिकली जिस संबंध को पनपने देना चाहिए ऐसा होता नहीं है। इस ग्रंथियों को तोड़ने की आवश्यकता है। 

स्त्री का स्त्री की दोस्त बनने के लिए पहला कदम है सुस्पष्टता या स्पष्टवादी। जब आप एकदम स्पष्टता से सामने वाली व्यक्ति से अपने मन की बात कर सको तो सामने वाली व्यक्ति आपको अवश्य समझेगी। दूसरा यह कि माना की आपके लिए किसीने ताली नहीं बजाई, तो लोग कब ताली बजाएंगे इस प्रतीक्षा करते हुए भी आप दूसरे के लिए ताली बजा सकते हैं। इसके लिए स्त्री को थोड़ा उदार होना पड़ेगा।

दोस्ती में तो बराबरी रहती है। सच्चा दोस्त वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दर्शाए, जो अवगुणों को गुण बताए वो तो खुशामदी है। सच्चे दोस्त के सामने दुःख आधा और हर्ष दुगुना प्रतीत होता है। दोस्त के लिए जीवनदान उतना कठिन नहीं है जितना कठिन कि ऐसा दोस्त खोजना जिसके लिए जीवन दान दिया जा सके।

सच्चे दोस्त हमें कभी गिरने नहीं देते, ना किसी की नजरों में और ना किसी के कदमों में ! मतलबी कभी अच्छा दोस्त नहीं हो सकता, और अच्छा दोस्त कभी मतलबी नहीं हो सकता! जिंदगी में दोस्त कम ही बनाइए, लेकिन दोस्ती जिंदगी भर निभाइए !

मुझे जो नहीं मिला वह तुझे मिले तो अच्छी बात है, तुम आगे बढ़ो। यह उदारता ही है जो वर्षों से आगे बढ़ने प्रयासरत स्त्री जाति की गति को वेग देगी। मैं बैठी हूं तु कर। इस प्रकार का बिनशरती साथ जब एक स्त्री दूसरी स्त्री को देगी तब वह अपेक्षारहित सुंदर दोस्ती होगी। यदि आप किसी को फूल गिफ्ट करते हैं तो उसकी सुगंध आपके हाथमें रह जाती है और वह आपके हाथ को ही नहीं आपके संबंध को भी महकाती है।

अतः आइए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम संकल्प करें कि अपने आसपास की सभी महिलाओं के विकास में हम भी सहभागी बनें और उनकी तरक्की से स्वयं को भी गौरवान्वित महसूस करें।

सभी माताओं और बहनों को

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

धनेश परमार “परम”

Comments (0)

Please login to share your comments.