ठुमकता मन

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meenu yatin

18 Aug 20241 min read

Published in poetry

ठुमकता मन

बचपन के टूटे खिलौने सा
कभी टूटा हुआ लम्हा ।
पैरों में चुभता है कोई
चूर हो चुका सपना।

किस किस राह चले कदम
मंजिल मिली कहांँ
मुसाफिर सा मन
भटके यहाँ- वहाँ।

ठुमकता मन मचलता मन
नुक्ताचीन है बडा़
कुछ भी इसे भाता है नहीं ।
खामियाँ ही देखता है मुझमें
क्यों इसे कुछ सुहाता नहीं।

कमियां निकालता है
हर बात की मेरी
मेरा ही दिल बना है
दुश्मन मेरा यहाँ ।

कितना तराशेगा ये
इसे खबर नहीं
हल्का ही हो चुका
सारा हुनर मेरा।

 

मीनू यतिन

 

Photo by Azraq Al Rezoan : https://www.pexels.com/photo/young-indian-woman-sitting-with-book-5641184/

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ठुमकता मन

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meenu yatin

18 Aug 20241 min read

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ठुमकता मन

बचपन के टूटे खिलौने सा
कभी टूटा हुआ लम्हा ।
पैरों में चुभता है कोई
चूर हो चुका सपना।

किस किस राह चले कदम
मंजिल मिली कहांँ
मुसाफिर सा मन
भटके यहाँ- वहाँ।

ठुमकता मन मचलता मन
नुक्ताचीन है बडा़
कुछ भी इसे भाता है नहीं ।
खामियाँ ही देखता है मुझमें
क्यों इसे कुछ सुहाता नहीं।

कमियां निकालता है
हर बात की मेरी
मेरा ही दिल बना है
दुश्मन मेरा यहाँ ।

कितना तराशेगा ये
इसे खबर नहीं
हल्का ही हो चुका
सारा हुनर मेरा।

 

मीनू यतिन

 

Photo by Azraq Al Rezoan : https://www.pexels.com/photo/young-indian-woman-sitting-with-book-5641184/

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