
कस्तूरी मृग खोजे
कस्तूरी मृग खोजे
कस्तूरी मृग खोजे
उस सुगंध को,
जो उसके अंदर
समाए।
ऐसे ही मानव
ढूंढे प्रेम को बाहर,
और अपने भीतर
ना झांक पाए।
कस्तूरी मृग खोजे।।
कितना भी प्यार
लुटाओ किसी पर,
स्वार्थ मिटते ही,
वह अदृश्य हो जाएगा।
लेन देन का रिश्ता,
लेने देने तक
सिमट कर रह जाएगा।
भाग दौड़ की दुनिया में,
कोई कब तक साथ निभाए।
कस्तूरी मृग खोजे।।
हंसने के पल में
सब आते हैं,
खूब कसकर
गले लगाते हैं।
गम में भी कोई कोई
दस्तक दे जाते है।
पर तुम जैसा सोचकर,
तुमसा होकर,
शायद ही कोई बन पाए।
कस्तूरी मृग खोजे।।
अब ना इंतज़ार करो,
रूख अंदर की ओर करो,
खुद से प्यार करो।
यह ऐसा प्रेम है,
जो ना कभी घट पाए।
कस्तूरी मृग खोजे।।
रचयिता
दिनेश कुमार सिंह
Photo by Jacub Gomez: https://www.pexels.com/photo/photo-of-man-standing-on-rock-near-seashore-1142948/
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