और मौसम बदल गया !

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dineshkumar singh

28 Jul 20243 min read

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और मौसम बदल गया !

 

दवाई की यह दूकान २४x ७ अर्थात दिन रात खुली रहती है।  सुबह के वक़्त जब मै गया तो कोई  नहीं था। 

दूकान का पुराना कर्मचारी ‘सज्जन’ मुस्तैदी से ग्राहक का इंतजार कर रहा था।  मै अभी दवाइयों का आर्डर दे रहा था , तब तक उसका एक और साथी अंदर से काउंटर पर आया और आकर मेरे आगे लटक गया।  ना कोई मास्क और ना ही दो गज की दूरी।

“वो सो रहा है, और सर काम कर रहे है।” उसने शिकायत से कहा। 

मैंने उसके शब्दों में ही नहीं पर चेहरे पर भी शिकायत देखी।  सुबह सुबह मै उसे कोरोना की सावधानियों के बारे में लेक्चर देकर अपना और उसका दोनों का दिन बर्बाद नहीं करना चाह रहा था। मेरा आर्डर लेने वाले सज्जन, भी थोड़े दुःखी हुए पर ज़्यादा कोई प्रतिक्रिया दिए बिना मेरी दवाइयां देने में व्यस्त हो गए। यह एक बड़ी दूकान थी और भीड़ के वक्त तक़रीबन ८ से १० लोग यहाँ काम करते दिखाई देते हैं।  ज़ाहिर है, जहाँ बर्तन होंगे , वहाँ आवाज़ भी होगा। सो लोगो का सहकर्मियों से शिकायत तो बनता है।

तभी अचानक हाथो में थर्मश (thermus) लिए चायवाला आ गया। उसने गर्म गर्म दूधवाली चाय पेपर के छोटे छोटे कप में उड़ेली।  सज्जन ने कहा, जा उसे भी चाय दे आ। शिकायत करने वाला बंदा भी ख़ुशी ख़ुशी चला गया।  सज्जन ने चार चाय का आर्डर दिया और पर्स से पचास रुपये निकाल कर दिए।  इंसान का पर्स उसके बारे में बहुत कुछ कह जाता है।  पर्स कुछ खाली खाली होने की शिकायत कर रहा था। तभी दूकान के अंदर से दो और लोग बाहर आये। उनके चहरे से उबासी झलक रही थी। चाय वाले ने दो कप चाय उन्हें थमा दिया। अब सभी के हाथों में चाय का प्याला था

श्री सज्जन ने भरी आत्मीयता से मुझे भी चाय के लिए पूछा।  यह है भारतीय संस्कृति। मन में तो चहास जाग गई थी, पर हिम्मत नहीं हुई।  मैंने मास्क के अंदर से मुस्कराते हुए उन्हें मना कर दिया।  उन्होंने ने भी मुस्कराते हुए मेरा बिल बनाया , मैंने गूगल पे किया और पैकेट लेकर चलता हुआ। निकलने से पहले देखा अब चारों लोग चाय की चुस्की लेते हुए हँसी मज़ाक कर रहे थे। 

शिकायत तो जिंदगी में हमेशा रहती है।  कभी दूसरों से , कभी अपनो से और कभी खुद से।  पर एक अच्छी चाय का प्याला मूड़ (मौसम) बदल ही देता है।

 

दिनेश कुमार सिंह

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दवाई की यह दूकान २४x ७ अर्थात दिन रात खुली रहती है।  सुबह के वक़्त जब मै गया तो कोई  नहीं था। 

दूकान का पुराना कर्मचारी ‘सज्जन’ मुस्तैदी से ग्राहक का इंतजार कर रहा था।  मै अभी दवाइयों का आर्डर दे रहा था , तब तक उसका एक और साथी अंदर से काउंटर पर आया और आकर मेरे आगे लटक गया।  ना कोई मास्क और ना ही दो गज की दूरी।

“वो सो रहा है, और सर काम कर रहे है।” उसने शिकायत से कहा। 

मैंने उसके शब्दों में ही नहीं पर चेहरे पर भी शिकायत देखी।  सुबह सुबह मै उसे कोरोना की सावधानियों के बारे में लेक्चर देकर अपना और उसका दोनों का दिन बर्बाद नहीं करना चाह रहा था। मेरा आर्डर लेने वाले सज्जन, भी थोड़े दुःखी हुए पर ज़्यादा कोई प्रतिक्रिया दिए बिना मेरी दवाइयां देने में व्यस्त हो गए। यह एक बड़ी दूकान थी और भीड़ के वक्त तक़रीबन ८ से १० लोग यहाँ काम करते दिखाई देते हैं।  ज़ाहिर है, जहाँ बर्तन होंगे , वहाँ आवाज़ भी होगा। सो लोगो का सहकर्मियों से शिकायत तो बनता है।

तभी अचानक हाथो में थर्मश (thermus) लिए चायवाला आ गया। उसने गर्म गर्म दूधवाली चाय पेपर के छोटे छोटे कप में उड़ेली।  सज्जन ने कहा, जा उसे भी चाय दे आ। शिकायत करने वाला बंदा भी ख़ुशी ख़ुशी चला गया।  सज्जन ने चार चाय का आर्डर दिया और पर्स से पचास रुपये निकाल कर दिए।  इंसान का पर्स उसके बारे में बहुत कुछ कह जाता है।  पर्स कुछ खाली खाली होने की शिकायत कर रहा था। तभी दूकान के अंदर से दो और लोग बाहर आये। उनके चहरे से उबासी झलक रही थी। चाय वाले ने दो कप चाय उन्हें थमा दिया। अब सभी के हाथों में चाय का प्याला था

श्री सज्जन ने भरी आत्मीयता से मुझे भी चाय के लिए पूछा।  यह है भारतीय संस्कृति। मन में तो चहास जाग गई थी, पर हिम्मत नहीं हुई।  मैंने मास्क के अंदर से मुस्कराते हुए उन्हें मना कर दिया।  उन्होंने ने भी मुस्कराते हुए मेरा बिल बनाया , मैंने गूगल पे किया और पैकेट लेकर चलता हुआ। निकलने से पहले देखा अब चारों लोग चाय की चुस्की लेते हुए हँसी मज़ाक कर रहे थे। 

शिकायत तो जिंदगी में हमेशा रहती है।  कभी दूसरों से , कभी अपनो से और कभी खुद से।  पर एक अच्छी चाय का प्याला मूड़ (मौसम) बदल ही देता है।

 

दिनेश कुमार सिंह

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