
अंदर बाहर की दुनिया
है एक शोर अंदर भी,
और बाहर भी ,
है एक दुनिया अंदर भी,
और बाहर भी,
है कर रहा हैं बात कोई,
अंदर भी और बाहर भी,
है एक दृष्टि अंदर की ,
और बाहर की,
है सून रहा हैं वो कुछ,
अंदर भी और बाहर भी।
है शिव बसा एक ,
अंदर भी और बाहर भी,
है शक्ति तुम ,
एक अंदर भी और बाहर भी।
है क्या करना,
यह तय तुम्हें हैं करना।
है दो रास्ते,
एक अंदर की और बाहर की।
है अंदर जो पनपता,
बाहर वही है दिखता ।
है अंदर की आवाज को सुनना,
या उस शिव ही में समा जाना ,
यह तय तुम्हें हैं करना,
यह तय तुम्हें हैं करना ।
रचयिता
स्वेता गुप्ता
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