
संगत वाली चाय

संगत वाली चाय
सुबह की भागदौड़ में ठंडी होती चाय
भाती है बहुत,
इतवार की फुरसत वाली चाय
यों तो अच्छा लगता नहीं,
तनहा चाय का प्याला
अच्छी लगती है मुझको संगत वाली चाय।
महक उठे तो सुकून भर दे,
फिर क्या हो जो
देखे अपने मन मफिक रंगत वाली चाय,
ठंड के कुहरे में,
कंपकपाती हवा और
ठंडे हाथों में गरमाहट वाली चाय
बारिश की फुहारे हो,
तुम हो,
तुम्हारा साथ या तुम्हारी बात हो,
और हो हल्की मीठी सी अदरक वाली चाय।
चाय को साथ जरूरी है,
रिश्तो या दोस्तों का
आप का ,या किसी किताब का
पन्नों का, कलम का और दवात का।।
रचयिता – मीनू यतिन
Photo by Ketut Subiyanto from Pexels
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