
मेरे सदगुरु
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गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में
मेरे सदगुरु
सदगुरु राह दिखा रहा,
कह रहा…. देख! मैं हूँ आया|
मत भटक, उलझ माया में …
मत झटक… पकड़ यह हाथ,
प्यारे! ले चलूँ तो को, भवसागर के पार….|
अन्तः चक्षु मैं खोल रहा.. दे रहा अंतर्दृष्टि.,
साक्षी हो जा.. द्रष्टा बन!
जिसकी माया.., उसको देख !
क्यों है मोहित.., हो रहा दिग्भ्रमित..?
देख! कैसा अद्भुत है यह ‘खेल’|
मायापति ने कैसा है यह संसार रचाया ..,
त्रिदेवों ने भी पार न पाया|
तोड़ जंजीरें सत् रज तम् की,
लगा ले तू छलाँग….!
तू है उसी का अंश,
जो है गुणातीत….कालातीत…. चिर-परिचित|
कैसे भूल गया, तू है उसका ‘मीत’..?
स्वच्छंद विचर, परम मुक्त है तू..|
कैसी दूरी…. कैसा भेद..?
अपने पिया से हो गया ‘एक’!
तो को सोहे है यह ‘मेला’
भीड़ में क्यों चल रहा अकेला….?
पकड़ ले गुरु के चरण..,
तन मन धन….. कर दे अर्पण|
कब से है वह तक रहा,
‘तो’ को दिखा रहा है राह..,
तू क्या रहा है ताक ?
बावरे! अंतर में देख!
रोम-रोम है ‘दिव्य’
जल रहा है अखंड दीप |
अहंकार विकार पाप- सकल ‘भस्म’ हो रहा,
जगमग है…. अंतर्जगत सारा..!
कैसा अद्बुत है…. यह देख नज़ारा|
आँखें खोल|
बीत गयी रात.., हो रही सवेर..!
मत कहियो पाछे…. क्या करूँ..?
क्यों रह गया सोया…? हो गयी देर..|
अब पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गयी ‘खेत’|
सदगुरु कह रहा- मोहे हो रही देर..|
उठ! जाग, मुसाफिर! हो गयी सवेर!
हे गुरुदेव ! समस्त मानवता को चरणों में स्थान दें – भक्ति का दान दें | गुरुदेव की अनंत कृपा का सुफल है यह दिव्य अनुभूति | गुरु के श्री चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम – नमन – वंदन |
(सदगुरु टाइम्स से साभार )
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –
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