राम

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dineshkumar singh

25 Aug 20241 min read

Published in poetry

राम

इस माटी की दुनिया में
डूबे हुए सारे है,
कोई दौड़े, नगर नगर,
कोई सपनों में दिन
गुजारे है।

कोई जीतता है जगत को,
कोई जीतता है मन को,
कोई ढूंढे खुशियाँ,
कोई धन को निहारे है।

पर कुछ ऐसे भी निर्मोही थे,
जिनको इसमें रस न था,
जिन्होंने एक ध्येय पर,
जीवन भी वारे है।

सदियों की बीती हुई रात में,
कोई ढूंढता था सुबह को,
इंतजार था उनका,
जो उनके प्यारे है।

आज उनके वो प्रेम
काम आए हैं।
आज उनके वो राम
आए है,
माटी के जीवन में
जान लौट आए हैं।

दिनेश कुमार सिंह

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राम

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dineshkumar singh

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राम

इस माटी की दुनिया में
डूबे हुए सारे है,
कोई दौड़े, नगर नगर,
कोई सपनों में दिन
गुजारे है।

कोई जीतता है जगत को,
कोई जीतता है मन को,
कोई ढूंढे खुशियाँ,
कोई धन को निहारे है।

पर कुछ ऐसे भी निर्मोही थे,
जिनको इसमें रस न था,
जिन्होंने एक ध्येय पर,
जीवन भी वारे है।

सदियों की बीती हुई रात में,
कोई ढूंढता था सुबह को,
इंतजार था उनका,
जो उनके प्यारे है।

आज उनके वो प्रेम
काम आए हैं।
आज उनके वो राम
आए है,
माटी के जीवन में
जान लौट आए हैं।

दिनेश कुमार सिंह

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