लहरें

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meenu yatin

28 Jul 20241 min read

Published in poetry

लहरें

समंदर को देखो न कितना खामोश है
ये तो लहरों का शोर है
जाती तो हैं मगर  वापस पलटती हैं
खुद से उनकी अपनी होड़ है
छुड़ा रही हैं दामन मगर छूटता भी नहीं
कोशिश उनकी पुरजोर है

स्कूल से छोटे बच्चो का जैसे
घर को दौड़ लगाना
जैसे पिता की बाहों में
बच्चे का झूलते हुए सो जाना
जाने क्या क्या  लगता है  मुझे ,
लहरों का आना जाना

समंदर का क्या,
वो तो बस देखता है लहरों  का खेलना
उनकी अठखेलियाँ और उनका खिलखिलाना
वो तो शांत ही रहता है
अपने भीतर जाने कितना कुछ छिपाए
जाना उसने जिसने गहराई तक गोते लगाए।।

 

मीनू यतिन

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लहरें

समंदर को देखो न कितना खामोश है
ये तो लहरों का शोर है
जाती तो हैं मगर  वापस पलटती हैं
खुद से उनकी अपनी होड़ है
छुड़ा रही हैं दामन मगर छूटता भी नहीं
कोशिश उनकी पुरजोर है

स्कूल से छोटे बच्चो का जैसे
घर को दौड़ लगाना
जैसे पिता की बाहों में
बच्चे का झूलते हुए सो जाना
जाने क्या क्या  लगता है  मुझे ,
लहरों का आना जाना

समंदर का क्या,
वो तो बस देखता है लहरों  का खेलना
उनकी अठखेलियाँ और उनका खिलखिलाना
वो तो शांत ही रहता है
अपने भीतर जाने कितना कुछ छिपाए
जाना उसने जिसने गहराई तक गोते लगाए।।

 

मीनू यतिन

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