जिंदगी की बिसात

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aparna ghosh

29 Jul 20241 min read

Published in poetry

जिंदगी की बिसात

जिंदगी कहां काले सफेद में बसती है,

वो तो बीच के अनगिनत परतों में सजती है ,

 

कभी सफेद सा झूठ, कभी काला सा सच,

जिंदगी बस इसी कशमकश में चलती है,

 

तेरा सच कभी मेरा ढकौसला बनता है,

मेरे झूठ से कभी तेरी जिंदगी सँवरती है,

 

कई बार सफेद और काले के कोहरे में,

जिंदगी जीने लायक स्लेटी परते टटोलती है,

 

कभी तेरा झूठ मेरे कोरे जीवन को रंगता है,

कभी निर्मल प्रेम से जिंदगी फिर निखरती है,

 

और कई बार गुनाह के डर से शर्मिंदा होकर,

जिंदगी काले सफेद के अखाड़े में सड़ती हैं,

 

जिंदगी कहां काले सफेद में बसती है,

वो तो बीच के अनगिनत परतों में सजती है ।

 

 

स्वरचित एवं मौलिक

©अपर्णा

मुंबई

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जिंदगी की बिसात

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aparna ghosh

29 Jul 20241 min read

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जिंदगी की बिसात

जिंदगी कहां काले सफेद में बसती है,

वो तो बीच के अनगिनत परतों में सजती है ,

 

कभी सफेद सा झूठ, कभी काला सा सच,

जिंदगी बस इसी कशमकश में चलती है,

 

तेरा सच कभी मेरा ढकौसला बनता है,

मेरे झूठ से कभी तेरी जिंदगी सँवरती है,

 

कई बार सफेद और काले के कोहरे में,

जिंदगी जीने लायक स्लेटी परते टटोलती है,

 

कभी तेरा झूठ मेरे कोरे जीवन को रंगता है,

कभी निर्मल प्रेम से जिंदगी फिर निखरती है,

 

और कई बार गुनाह के डर से शर्मिंदा होकर,

जिंदगी काले सफेद के अखाड़े में सड़ती हैं,

 

जिंदगी कहां काले सफेद में बसती है,

वो तो बीच के अनगिनत परतों में सजती है ।

 

 

स्वरचित एवं मौलिक

©अपर्णा

मुंबई

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