
बिन सोचे
बिन सोचे
सोच ,सोचकर जो लिखे,
वह सोच नहीं है तेरी।
बिन सोचे जो लिखे,
वही कला है तेरी।
सोचकर जो लिखें,
वो दिल को ना भाए।
बिन सोचे, जो लिखे,
वह दिल को छू जाएं।
सोच अगर सही हों,
तो सब सुहाना सा लगता है।
जो सोच सही ना हों,
वो बेगाना सा लगता है।
बिन सोचे आज लिख तो रही हूं,
देखो, आज खुदको मैं परख रहीं हूं।
ए सोच, तू रुक जा वहीं,
आज दिल की बात हों रहीं है।
सोचकर दिल की बातें ना होती मुझसे,
बिन सोचे, बहुत कुछ कह जाती मैं खुदसे।
देख लेने दें, क्या कुछ छुपा है कब से,
आज देख लेने दे, क्या कुछ छुपा है कब से।
रचयिता – स्वेता गुप्ता
Comments (0)
Please login to share your comments.