करीब

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namrata gupta

19 Aug 20241 min read

Published in poetry

करीब

 

जब करीब थे तब कीमत नहीं थी मुझे

दूर जाकर समझा है अब कीमत तुम्हारी

तुमसे दूर रहकर जी न पाएंगे हम

तुमसे दूर जाने कि सोचने की,

नहीं हिम्मत है हमारी

वफ़ा तो मैंने भी किया है

हर वक्त तुम्हारे साथ

यह अलग बात है

तुम समझे नहीं मेरे जज्बात

कितनी जद्दोजहेद चल रही है

धड़कन में मेरे

आसूँ थमते नहीं मेरे, यह न देखते है की

यह दिन है या रात

बस एक ही शिकायत है तुमसे हमारी

अब जब भी मिलते हो मुझसे 

फेर लेते हो इस कदर नजर

जैसे, हम मिले ही न थे कभी….

 

नम्रता गुप्ता

 

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जब करीब थे तब कीमत नहीं थी मुझे

दूर जाकर समझा है अब कीमत तुम्हारी

तुमसे दूर रहकर जी न पाएंगे हम

तुमसे दूर जाने कि सोचने की,

नहीं हिम्मत है हमारी

वफ़ा तो मैंने भी किया है

हर वक्त तुम्हारे साथ

यह अलग बात है

तुम समझे नहीं मेरे जज्बात

कितनी जद्दोजहेद चल रही है

धड़कन में मेरे

आसूँ थमते नहीं मेरे, यह न देखते है की

यह दिन है या रात

बस एक ही शिकायत है तुमसे हमारी

अब जब भी मिलते हो मुझसे 

फेर लेते हो इस कदर नजर

जैसे, हम मिले ही न थे कभी….

 

नम्रता गुप्ता

 

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