
कितने कारण दोगे हारने के?
कितने कारण दोगे हारने के?
कितने कारण दोगे हारने के,
कभी यह न हुआ,
तो कभी वह न हुआ।
कभी उसने साथ छोड़ दिया,
कभी इसने मुख मोड़ लिया,
कभी कुछ बन नहीं पाया था,
कभी किसी ने बना बनाया
तोड़ दिया।
कितने कारण दोगे हारने के?
संघर्षों का दौर तो चलते रहता है,
मनुष्य इनसे डर कहाँ रुकता है?
दस बाज़ी जब खेलोगे,
नौ हारोगे, तब एक जीतोगे,
दूसरो से आस की बैसाखी छोड़कर,
बस अपने से आस लगाओ तुम,
उनकी बाट छोड़कर,
खुद से राह बनाओ तुम।
क्या जीत है, क्या हार है,
कर्मवीर को इससे
क्या फर्क पड़ता है।
हारेगा तो, जीतेगा भी एक दिन,
इस समर में जो लड़ता है।
तो, छोड़ कारणों की फेहरिस्त,
फिर से नई एक शुरुआत करो।
जितना ही है भाग्य तुम्हारा,
मन में ये आशीष भरो।
रचयिता- दिनेश कुमार सिंह
Photo by Jacub Gomez: https://www.pexels.com/photo/photo-of-man-standing-on-rock-near-seashore-1142948/
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