
पल..

पल..
गुजर गए जो लम्हे
वो कहाँ वापस आते हैं
फिर कहाँ मिलते हैं
वो पल, जो बीत जाते हैं
कभी भूली बिसरी
बातों में नाम आ जाते हैं
धुधँली सी तसवीर
बनती है यादों की,
बिगड़ जाती है
ये बात भी अजीब है न
जो बीत चुका है उस पल को
बार बार दोहराती है
जिंदगी, तू पगली सी हुई जाती है
मालूम है ,एक बार जो बीता
बस बीत गया,
वो पल कहाँ लौट पाता है
पगला सा मन करे बचपना
बाहें फैलाए बस उसे बुलाता है ।
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