अनकहा, अनसुना

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

Published in poetry

अनकहा, अनसुना

उन वादों से कह दो
याद न आएं मुझको
जो मैंने माँगे भी नहीं
तुमने निभाए भी नहीं
और कुछ अधूरे से सच
जिनसे अंजान हूँ मैं अब तक
जो तुमने कभी बताए ही नहीं ।

एक अरसा हो गया
बीत गए साल कितने !
फूट के रोए भी नहीं
खुल के मुस्कुराए भी नहीं।

एक गजल की तरह
गूँजता है जेहन में
जिसको भूले भी नहीं
और गुनगुनाए भी नहीं।

मिले हो मुद्दतों बाद
तो ऐसा लगता है
तुम कभी गए ही नहीं
या कि कभी आए ही नहीं।

 

मीनू यतिन

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अनकहा, अनसुना

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meenu yatin

17 Aug 20241 min read

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अनकहा, अनसुना

उन वादों से कह दो
याद न आएं मुझको
जो मैंने माँगे भी नहीं
तुमने निभाए भी नहीं
और कुछ अधूरे से सच
जिनसे अंजान हूँ मैं अब तक
जो तुमने कभी बताए ही नहीं ।

एक अरसा हो गया
बीत गए साल कितने !
फूट के रोए भी नहीं
खुल के मुस्कुराए भी नहीं।

एक गजल की तरह
गूँजता है जेहन में
जिसको भूले भी नहीं
और गुनगुनाए भी नहीं।

मिले हो मुद्दतों बाद
तो ऐसा लगता है
तुम कभी गए ही नहीं
या कि कभी आए ही नहीं।

 

मीनू यतिन

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